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________________ तरह खर्च करने का हमें क्या अधिकार है ? 82 उत्तर की भाषा से जान सकते है कि गांधी के भीतर अपव्यय मुक्त-संयमी चेतना का अद्भुत विकास था । उनकी प्रत्येक क्रिया में संयम - सादगी की स्पष्ट झलक जीवन के उत्तरार्ध में देखी गयी । आचार्य महाप्रज्ञ ने अखंड रूपेण संयम की साधना को जीवन का व्रत बनाया था । अहिंसा और संयम को समन्वित प्रस्तुति दी । 'अहिंसा का व्यापक स्वरूप है- संयम की चेतना का निर्माण ।' जब तक संयम की चेतना का विकास नहीं होगा अहिंसा की साधना अधूरी रहेगी। यदि अहिंसा का सघन विकास करना है तो संयममय जीवन शैली को अपनाना होगा। जितना - जितना आत्म नियंत्रण होगा, संयम होगा अहिंसा की चेतना प्रस्फुरित होती जायेगी । संयम के पुरोधा आचार्य महाप्रज्ञ ने जन-जन की संयम चेतना जगाने एवं आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुति देने में अहम भूमिका निभाई है। संयम का अर्थ है-उस व्यक्तित्व का विकास, जो बाह्य से निरपेक्ष होकर अपने-आपमें परिपूर्ण, संतुष्ट और परितृप्त है। संयम का अर्थ है- उस व्यक्तित्व का विनाश, जो बाह्य से अधिक सम्बन्ध होकर अपने-आप में अपूर्ण, असंतुष्ट और अतृप्त रहता है । महाप्रज्ञ ने इस सच्चाई को जीया है। उनकी पदार्थाकर्षण मुक्त संयम चेतना का एक उदाहरण पर्याप्त होगा - एक भाई बहुत बढ़िया घड़ी लेकर आया । महाप्रज्ञ से बोला- 'महाराज इसे रख लें।' 'उन्होंने कहा- नहीं।' उसने कहा- 'क्यों?' महाप्रज्ञ का उत्तर था - 'साधरण घड़ी है तो कोई चिंता नहीं रहती। कोई उसे उठाकर ले भी नहीं जाता। कीमती घड़ी है तो उसको संभाल कर रखना पड़ेगा, सावधानी रखनी पड़ेगी कि कोई उठाकर न ले जाए। एक भय का भार सिर पर और आ जाता है। 83 उनकी सोच में बढ़िया चीज साधु को लेनी ही नहीं चाहिए ।......साधारण चीज की तो नहीं, किंतु कोई विशिष्ट, बढ़िया चीज आई, वह चाहे घड़ी हो, कपड़ा हो, पैन हो, कुछ भी हो, बढ़िया नाम में ही खतरा है । वह भय को मोल लेने जैसा है । कथन में उत्कृष्ट संयम चेतना की स्पष्ट झलक है। संयम की शक्ति विश्व शांति का नियामक तत्त्व । इस ओर दुनियाँ का ध्यान केन्द्रित करते हुए महाप्रज्ञ ने कहा- हम संयम के द्वारा विश्वशांति की स्थापना करना चाहते हैं । केवल चर्चा, भाषण, विचार और चिन्तन से विश्व में शांति का सपना साकार नहीं होगा। जब तक आम जनता में, विश्व के नागरिकों में यह संयम की आस्था पैदा नहीं होगी, तब तक विश्व शांति के लिए होने वाली चर्चाएं और प्रयत्न व्यर्थ होंगे। आशय रूप विश्व शांति के लिए असंयम उपभोक्तावाद की वृत्ति का परिष्कार एवं संयम की चेतना का विकास अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । मनीषियों ने अहिंसा की पृष्ठभूमि में संयम के विकास को महत्त्वपूर्ण माना है । अपने जीवन में उसको उचित स्थान देकर उदाहरण प्रस्तुत किया है। साध्य-साधनशुद्धि साध्य-साधन शुद्धि पर गांधी और महाप्रज्ञ ने समान रूप से बल दिया । राजनीति के क्षेत्र में साधन शुद्धि पर बल देने वाले गांधी अपनी कोटि के अकेले नेता थे । भारतीय स्वतंत्रता के संदर्भ में- 'मैंने भारत की आजादी के लिए जीवन भर कोशिश की है, लेकिन यदि इसे सिर्फ हिंसा द्वारा ही पाया जा सकता है तो मैं इसे पाना नहीं चाहूँगा । स्वाधीनता प्राप्त करने के साधन उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं, जितना की स्वयं साध्य ।' कथन की पुष्टि में कहा 'यदि भारत हिंसा के सिद्धांतों को अपनाता है तो वह अस्थायी विजय भले ही प्राप्त कर ले, लेकिन तब वह मेरे हृदय का गर्व नहीं रहेगा । मेरा अभेद तुला : एक विमर्श / 383
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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