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________________ महाप्रज्ञ जैसे संतों की बहुत अपेक्षा है। आप जैसे महानुभावों के सहयोग से ही देश का सही निर्माण हो सकेगा। मैं इस कार्य में आपका पूर्ण सहयोगी बनूँगा।' एक वैज्ञानिक के द्वारा आचार्य महाप्रज्ञ के बाबत यह टिप्पणी अपना मूल्य रखती है पर उनका व्यक्तित्व इससे उपरत अकल्प्य था। दिव्य कलनाओं से सर्जित व्यक्तित्व में जादुई आकर्षण था। संयम की परिमल हर घटक को वासित करती रही। वे जिस मार्ग से गुजरते उसका काया पलट हो जाता। वे जिस गाँव, शहर में पहुँचे वहाँ के वातावरण में अपूर्व परिवर्तन घटित हुआ है। ऐसे अनगिन परिवर्तन के साक्षी भूत प्रसंग है। हाल ही में घटित एक का उल्लेख किया जा रहा है। मेड़ता सिटी में नागौर जिलाधीश श्री मधुकर गुप्ता ने जिले के अनेक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के साथ दर्शन कर अल्पकालीन प्रवास के व्यापक परिणामों का निवेदन किया-आचार्य जी! इन दिनों में मैं जिले के अनेक गाँवों और शहरों मे गया। सर्वत्र सद्भाव, समन्वय और उत्साह का वातावरण देखा। ___आपके प्रवास की सर्वत्र सकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिली। यदि नागौर जिले में आपका दीर्घकालीन परिभ्रमण और प्रवास होता तो एक आदर्श जिले के रूप में अपनी पहचान बना लेता। आपका अहिंसा प्रशिक्षण का उपक्रम अच्छा है। यह कथन महाप्रज्ञ के आध्यात्मिक सौंदर्य का परिचायक है जिसमें असीम क्षमताओं का प्रवाह परिलक्षित हुआ है। संयम के प्रति गांधी का आदर भाव प्राणवान था। ऐसा अहसास उनके शब्दों से होता है। 'संयम का स्वागत दुनिया के तमाम शास्त्र करते हैं। समकोण सब जगह एक ही प्रकार का होता हैं। दूसरे कोण अगणित है। अहिंसा और सत्य ये सब धर्मों के समकोण हैं। जो आचार इस कसौटी पर न उतरे वह त्याज्य हैं।'80 प्रकट रूप से गांधी संयम को अहिंसा और सत्य की कसौटी पर कसकर जीवन में उतारने के पक्षधर थे। संयम चेतना को संपुष्ट करने के लिए गांधी ने छोटी-छोटी बातों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। इस तथ्य की प्रस्तुति महाप्रज्ञ के शब्दों में-एक भाई आया आश्रम का और दांतून तोड़कर लाया। गांधी ने कहा- 'अरे! इतना क्यों तोड़ा? तुमने फालतू तोड़ लिया। थोड़े से ही तुम्हारा काम चल सकता था। टहनी को ज्यादा तोड़ लिया।' प्रश्न टहनी का नहीं, प्रश्न फालतू अपव्यय का था। ऐसा ही दूसरा प्रसंग जो प्रमत्त चेतना का प्रतिकार करता है। एक व्यक्ति आया और खटिया को ऐसे ही सरका दिया। गांधी ने कहा कि तुमने खटिया सरकाई, देखा ही नहीं कि कोई जीव-जन्तु । कितनी छोटी बात कि जहाँ चलते समय आदमी बैठे हए को कचलकर चला जाता है और ध्यान नहीं देता वहाँ खटिया को सरकाने में जीव-जन्तु का ध्यान दिया जाए। जाहिर है गांधी के भीतर अपव्यय, प्रमाद से उपरत अप्रमत्त चेतना का विकास कितना प्रखर था। संयम चेतना की बदौलत उन्होंने अपने जीवन की सभी क्रियाओं को सीमित और सादगी पूर्ण बनाया। गांधी की दैनिक जीवन चर्या में व्यवहार में संयम की संपट थी। सबह मंह धोने के बाद दंतुन धोकर जलाने के लिए गांधी सूखने को सम्भालकर एक तरफ रख देते। हाथ धोने के लिए पानी भी जरूरत से अधिक कोई भूल से गिराता तो वे कहते, 'साबरमती के सारे पानी के मालिक हम ही नहीं, और लोग भी हैं।' सार्वजनिक धन के उपयोग में पाई-पाई का खर्च विवेक पूर्वक हो इसके लिए बड़े सजग थे। इसकी पुष्टि मनु बहन के प्रश्न उत्तर में देखी जाती है। मनु ने एक बार पूछा 'बापू, आप ग्यारह बजे सोते हैं और तीन बजे उठ जाते हैं, फिर लालटेन क्यों बुझा देते हैं?' बापू का उत्तर था 'तेरा बाप कमाता है कि मेरा बाप कमाता है? यह जनता का पैसा है। उसे इस 382 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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