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________________ . मानवीय एकता में विश्वास। . मानवीय स्वतंत्रता में विश्वास। विश्व-शांति एवं विश्व-मैत्री में विश्वास। . सह-अस्तित्व में विश्वास . सत्य में विश्वास . प्रामाणिकता में विश्वास . निश्छल-व्यवहार में विश्वास पवित्रता में विश्वास . संग्रह की सीमा में विश्वास ये विश्वास धर्म के मूलभूत सिद्धांतों में आस्था को प्रकट करते है। प्रथम चार अहिंसा अणुव्रत के फलित हैं। पाँचवां सत्य, छठा-सातवां अचौर्य, आठवां ब्रह्मचर्य और नवां अपरिग्रह का फलित है। व्यवहार में अध्यात्म का प्रतिपालन जीवन की महान् सफलता है। इससे व्यक्ति और समाज दोनों लाभान्वित होते हैं। इसका आधारभूत नैतिक आंदोलन 'अणुव्रत-आंदोलन' है। इसके द्वारा समाज, राष्ट्र का चरित्र उन्नत बनता है। उन्नत चारित्र देश की अखंडता-सुरक्षा का आधार है। महाप्रज्ञ के शब्दों में-चरित्र और देशभक्ति इन दोनों का परस्पर गहरा संबंध है। देश की सुरक्षा करने वाले भी नैतिकता और चरित्र के अभाव में ऐसा कार्य कर देते हैं कि देश की सुरक्षा भी धुंधलाने लगती है। व्यापक पैमाने पर वे नैतिक-चारित्रिक उत्थान पर बल देते एवं इसके व्यवहारिक स्वरूप की निर्मिति के लिए 'अणव्रतग्राम' अहिंसक ग्राम की योजना को मूर्त बनाने में अपनी शक्ति का नियोजन भी करते रहे। दाण्डी मार्च : अहिंसा यात्रा एक व्यूह अहिंसा के प्रसार का एक सशक्त प्रयोग है-यात्रा। गांधी की दाण्डी यात्रा और महाप्रज्ञ की अहिंसा यात्रा भिन्न स्थितियों में संपादित इतिहास का स्वर्णिम दस्तावेज है। यात्रा की दृष्टि से दोनों ही पद यात्राएँ हैं पर उद्देश्य की दृष्टि से सर्वथा भिन्न है। गांधी की दाण्डी यात्रा जहाँ आजादी के सत्याग्रह आंदोलन के तहत नमक कानून को तोड़ने के निमित्त संपादित हुई, महाप्रज्ञ की अहिंसा यात्रा वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में सद्भावना और भाईचारे की प्रतिष्ठा के साथ अहिंसा की शक्ति को व्यावहारिक बनाने के लिए संपादित हुई। एक का उद्देश्य स्वराज्य था जबकि दूसरे का उद्देश्य स्वतंत्र देश के नैतिक पतन को रोक कर नैतिक मूल्यों का विकास और बढती हिंसा के स्थान पर अहिंसा के प्रति आस्था को पुनः जगाना। संज्ञान हेतु उनका विमर्श जरूरी है। 12 मार्च 1930 की सुबह इतिहास प्रसिद्ध दाण्डी यात्रा शुरू हुई। गांधी के साथ आश्रम के इकहत्तर साथी थे। वह कूच केवल दाण्डी तक के लिए नहीं था, वह तो पूर्ण आजादी के लिए था। गांधी के नेतृत्व में काफ़िले का पैदल प्रवास एक महान् राष्ट्रीय यात्रा थी। हर आदमी की जवान पर 'नमक' का नाम था। अहिंसा इस यात्रा का प्राण थी। अहिंसा की पृष्ठभूमि में उन्होंने लोगों को समझाया कि सरकार सारी निष्ठुरता का उपयोग करेगी। वह हमें कुचल देना चाहेगी, लेकिन अहिंसा और विनय का मार्ग हमें नहीं छोड़ना है। भले ही सिर पर डण्डे बरसें, घायल हो जाएँ और मर भी जाना पड़े तो वह आहुति है, उसके लिए मन में दुःख नहीं होना चाहिए। उन्होंने नेताओं के गिरफ्तार हो जाने पर भी आंदोलन जारी रखने के गुर बतलाये। सारा कार्यक्रम इस तरह बनाया गया था कि नमक-कानून को तोड़ने में हुई गिरफ्तारियों से आंदोलन किसी भी स्थिति में रुके नहीं। दाण्डी मार्च से पूर्व गांधी ने लार्ड इर्विन को एक पत्र भेजा जिसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया-स्वाधीनता का आन्दोलन मूलतः गरीब से गरीब की भलाई के लिए है। इसलिए इस लड़ाई की शुरुआत भी इस अन्याय के विरोध से होगी। आश्चर्य तो इस बात पर है कि इतने लम्बे समय 360 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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