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________________ जाति के लिए अमूल्य उपहार बन गया। पूरी दुनिया के प्रबुद्ध जन-मानस ने गांधी के अहिंसक आजादी आंदोलन को पाशविक शक्ति पर नैतिक शक्ति की विजय करार दी। राजनीति उनका न केवल कर्म क्षेत्र बनकर रहा अपितु आत्म विशुद्धि का धर्मक्षेत्र बन गया। कर्मक्षेत्र की तुला पर आचार्य महाप्रज्ञ का समाचरण गांधी से सर्वथा भिन्न था। उनका कर्मभेदी आत्मोथान का एकमात्र लक्ष्य आध्यात्मिक चिंतन-मंथन पूर्वक शोध और एतद् विषयक गतिशीलता बनी। 'तिन्नाणं तारयाणं' मुनि के विशेषण को सार्थक बनाने में महाप्रज्ञ ने अपनी प्राज्ञशक्ति को नियोजित किया। उन्होंने धार्मिक जगत् में पनपे अवरोध-धर्म से परलोक सुखी बनता है, को हटाने में अहँ भूमिका अदा की। उनका मानना था कि धर्म से वर्तमान जीवन सुखी और शांतिपूर्ण बनता है। पर धार्मिक कहलाने वालों को अपना सिंहावलोकन करना होगा। 'चितंन करें कि धर्म को हम किस रूप में स्वीकार कर रहे हैं। जहाँ प्रामाणिकता नहीं, नैतिकता नहीं, ईमानदारी नहीं, वहाँ अहिंसा नहीं हो सकती और व्यवहार भी अच्छा नहीं चल सकता।' अध्यात्म की गहराई में अवगाहन कर उन्होंने अनेक मौलिक तथ्यों का विश्लेषण किया। उन्होंने बतलाया-'वसुधैव कुटुम्बकम्'-आध्यात्मिक भूमिका का अनुचिन्तन है। अध्यात्म के शिखर पर पहुँचने वाले व्यक्ति के लिए कोई अपना और पराया नहीं होता। तव-मम का भेद समाप्त हो जाता है। इस भूमिका की अनुभूति और उसकी अभिव्यंजक शब्दावली को हम समाज की भूमिका पर सीधा नहीं उतार सकते।.....समाज व्यवस्था में परिवर्तन चाहने वाले अच्छे-अच्छे सिद्धान्तों, वचनों और प्रवचनों को सामने रखकर इतिश्री मान लेते हैं। सिद्धांत और विचार आकार लिए बिना ही निरंजन-निराकार बन जाते हैं। सामाजिक धरातल पर उच्च आदर्श तब तक व्यापक नहीं बन सकते जबतक व्यक्ति का मस्तिष्क अर्थात् अन्तःकरण बदल नहीं जाता। एतदर्थ उन्होंने मस्तिष्क परिष्कार हृदय परिवर्तन पर बल दिया। सामाजिक धरातल पर महाप्रज्ञ ने विकास की नूतन परिभाषा प्रस्तुत की-जिस राष्ट्र में नैतिकता अधिक है, सदाचार ज्यादा है, हिंसा कम है, अहिंसा का विकास है, लोग शांति और सुख के साथ जीते हैं, जहाँ पागलखाने या मेंटल हॉस्पीटल कम हैं, जेलें कम हैं, वह राष्ट्र और समाज विकसित है। विकास का यह पेरामीटर मानव मन में नई चेतना का संचार करता है। यह उनके व्यापक राष्ट्र प्रेम को प्रकट करता है कि वो अपनी सीमा में रहकर भी देश की प्रत्येक इकाई का वास्तविक विकास किस कदर चाहते थे। उनके शब्दों में- 'मैं हमेशा आदमी को सामने रखकर चलता हूँ। समाज में इन्सानियत का विकास हो, भाईचारा बढ़े, समाज और राष्ट्र की एकता मजबूत हो, नैतिक मूल्यों का विकास हो, यही हमारा मुख्य विजन है, यही हमारे कार्यक्रमों का निचोड़ हैं।' कथन में राष्ट्रोत्थान की स्पष्ट झलक है। नैतिकता की व्यापक प्रतिष्ठा हेतु उन्होंने सुझाया- 'अहिंसा के क्षेत्र में काम करने वाली स्वयं सेवी संस्थाओं का अपना एक मंच हो, संयुक्त राष्ट्रसंघ हो। उसका अपना अर्थशास्त्र हो, समाजशास्त्र हो, आचार-संहिता हो।' इस मंतव्य से महाप्रज्ञ की व्यापक अहिंसा जागृति की संकल्पना का अनुमान लगाया जा सकता है। उन्होंने अहिंसक ग्राम योजना एवं रोजगार प्रशिक्षण की प्रक्रिया को समाज में प्रतिष्ठित करने पर बल दिया। अहिंसा प्रशिक्षण की प्रविधि का सूत्रपात कर उसके रचनात्मक स्वरूप को व्यापकता देने के लिए सप्त वर्षीय अहिंसा यात्रा का संचरण किया। सामाजिक संदर्भ में अहिंसा की गुणवत्ता उजागर हो इसके लिए आध्यात्मिक शक्ति का नियोजन किया। अपनी सभाओं में लोगों से आह्वान किया-'हमें समाज को एक नया दर्शन देना है और वह दर्शन है अहिंसा का। अहिंसा में समाज के समीकरण की क्षमता है। समाज में जो इतना भेद, 354 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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