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________________ जिनका पालन वैयक्तिक नैतिकता व्यक्तिगत संवेगों और वृत्तियों पर नियंत्रण करने पर ही संभव होता है। जीवन-विज्ञान प्रशिक्षण में मूल्यों का शिक्षण भावनात्मक स्वस्थता का कारक है। इसके पीछे महत्त्वपूर्ण दृष्टि रही है-विद्यार्थी समाज में जीता है। उसे सामाजिक प्राणी बनना है। उसको समाज के नियमों को मानना है, राष्ट्र के नियमों का पालन करना है, क्योंकि वह राष्ट्र में रहता है। यदि शिक्षा के द्वारा उसकी यह मानसिकता नहीं बनती है तो वह अच्छा विद्यार्थी नहीं बन सकता। इससे भी अधिक जरूरी है संवेगों पर नियंत्रण करना। यह नैतिकता का महत्त्वपूर्ण बिन्दु है। यह शिक्षा के साथ जुड़े। जीवन-विज्ञान प्रशिक्षण में इसी अपेक्षा की पूर्ति हुई है। शिक्षा में साथ मानसिक शक्ति की बात भी जुड़ी होनी चाहिए। इस शक्ति का विकास जिस राष्ट्र, समाज या व्यक्ति में नहीं होता, वह कमजोर हो जाता है। जिन व्यक्तियों में मनोबल का विकास और भावात्मक विकास-दोनों न्यून हैं, शिक्षाशास्त्री उनके विकास के लिए नई-नई पद्धतियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। आज अपेक्षा है कि सामाजिक परिवेश बदले और वर्ग-संघर्ष, वैमनस्य आदि समस्याएँ समाहित हों। इसके लिए भावनात्मक विकास अपेक्षित है। इस अपेक्षा की संपूर्ति मूल्यों के अभ्यास से संभव है। मूल्यों की प्रतिष्ठा हेतु विशेषरूप से अनुप्रेक्षा और भावना योग के प्रयोग निर्दिष्ट हैं। अनुप्रेक्षाओं के प्रयोग से शरीरस्थ न्यूरोन्स वांछित विकास को संपादित करते हैं। परिणामतः चिंतन और अनुचिन्तन की प्रक्रिया से चित्त शुद्धि, चित्त समाधि, समस्या समाधान और संस्कार निर्माण की प्रक्रिया सुगम हो जाती है। मूल्यों से संबंधित प्रायोगिक अनुप्रेक्षाओं की सविधि मीमांसा, ‘अमूर्त चिन्तन' पुस्तक में की गयी है। भावना योग वैचारिक विशद्धि का प्रयोग है जिसका ऐतिहासिक संदर्भ है 'शिवसंकल्पमस्तु में मनः' मेरा मन पवित्र संकल्प वाला बने। मेरा मन निरन्तर पवित्र बना रहे। 48 मन की पवित्रता स्वभाव और व्यवहार को पवित्र बनाती है। परिणामतः अनेक वैयक्तिक, सामाजिक और राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान स्वतः हो जाता है। अहिंसा की असीम शक्ति प्रायोगिक संदर्भ से जुड़कर समाधान की नूतन रेखाएँ खींचने में समर्थ बनी। जिसमें इक्कीसवीं सदी के मानव का आध्यात्मिक-भौतिक पथदर्शन करने की अद्भुत क्षमता है। जहाँ तक प्रयोग पक्ष का संदर्भ है गांधी-महाप्रज्ञ की प्रयोग प्रविधि में समानता और वैशिष्ट्य की युति है। प्रयोगों के द्वारा हृदय परिवर्तन की प्रक्रिया को दोनों मनीषी समान रूप से स्वीकारते हैं। जहाँ तक वैशिष्ट्य का प्रश्न है गांधी ने देश (भारत) की आजादी के संदर्भ में अथवा जनजागरण की दृष्टि से अहिंसात्मक प्रयोगों को अपनाया। उन्हें सफलता भी मिली। साधुता के अनुगामी आचार्य महाप्रज्ञ ने स्वात्मानुभूति से जुड़े प्रयोगों को व्यवहारिक जगत् में प्रतिष्ठित कर व्यक्ति परिवर्तन से समूह परिवर्तन की मिसाल कायम की। जो स्वतंत्र भारत के नागरिकों की आत्म-विशुद्धि के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। विमर्श के आधार पर यह परिलक्षित होता है कि दोनों मनीषियों का एक मात्र लक्ष्य अहिंसात्मक प्रयोगों द्वारा व्यष्टि से समष्टिगत परिवर्तन घटित करना रहा है। व्यापकता का संदर्भ अब भी शेष है। संदर्भ 1. गांधी जी, हिन्द स्वराज्य, 12 2. डॉ. एस. एन. शर्मा, आधुनिक सामान्य मनोविज्ञान, 94 3. हरिजन सेवक, 19.4.42 परिवर्तन की सशक्त कड़ी : मूल्य बोध / 343
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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