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________________ होता है, उतनी करुणा उसमें जागती जाती है। मनुष्य जितना असंवेदनशील होता है, उतनी क्रूरता बढ़ती जाती है। क्रूरता पर नियंत्रण करुणा के द्वारा किया जा सकता है। क्रूरता की समस्या का मूल कारण है अमानवीय दृष्टिकोण, फिर चाहे वह लोभ के रूप में अभिव्यक्त हो या संग्रहवृत्ति के रूप में विकसित हो। इसको मिटाने का उपाय है-मानवीय दृष्टिकोण का विकास। इसे ही प्राचीन भाषा में आत्मौपम्यदृष्टि कहा गया है। इसका अर्थ है प्रत्येक प्राणी को अपने समान समझना। प्रत्येक व्यक्ति में चेतना जागे कि 'सब मेरे जैसे ही मनुष्य हैं। हम सब एक ही हैं। मैं भी मनुष्य हूँ। वह भी मनुष्य है। मुझे मनुष्य को मनुष्य की दृष्टि से देखना चाहिए।' जब तक इस दृष्टि का विकास नहीं होगा तब तक क्रूरता समाप्त नहीं होगी, व्यवहार नहीं बदलेगा। 43 मानवीय चेतना का विकास करुणा की पृष्ठभूमि में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है क्योंकि करुणा ही अहिंसा का प्राण और धर्म का फल है। अहिंसा और करुणा की चेतना जागे, प्राणी मात्र के प्रति समता की चेतना जागे और यह विचार सुदृढ़ बने कि मैं जानबूझकर किसी को कष्ट नहीं दूंगा। किसी को सताऊँगा नहीं, किसी के स्वत्व का हरण नहीं करूँगा। किसी का अहित और अनिष्ट नहीं करूँगा। यह चेतना ही धर्म का फल है। आज इसे गौण किया जा रहा है। संसार विरोधी जोड़ों (युगल) से बना है। भिन्नता के बावजूद संघर्ष से उबरने का सूत्र महावीर ने सह-अस्तित्व का दिया। इसका तात्पर्य है कि विरोधी व्यक्तियों, विरोधी विचारों और विरोधी धर्मों का सह-अस्तित्व हो सकता है। सामान्य धारणा है कि दो विरोधी धर्म एक साथ नहीं रह सकते। भगवान् महावीर ने कहा, 'दो विरोधी धर्म एक साथ रह सकते हैं।' दार्शनिक भाषा में नित्य-अनित्य, सामान्य-विशेष-ये एक साथ रह सकते हैं।....अस्ति और नास्ति, होना और न होना-दोनों साथ-साथ रहते हैं। दोनों विरोधी हैं, पर उनका सह-अस्तित्व है। विचारों की भिन्नता, शासन प्रणालियों की भिन्नता, जीवन स्तर एवं संस्कृति में भिन्नता के बावजूद सह-अस्तित्व संभव है। जिसका प्रमाण है भारतीय जनतंत्र। आध्यात्मिक मूल्य मूल्यों की श्रेणी में आध्यात्मिक मूल्य का सर्वोपरि स्थान है। अध्यात्म का सीधासा अर्थ है-अशुभ योग से शुभ योग में आना, अशुभ भाव से शुभ भाव में आना। जीवन-विज्ञान प्रशिक्षण के संदर्भ में आध्यात्मिक मूल्य का अर्थ है-स्वभाव में प्रतिष्ठित होना। इस कोटि में स्वीकृत मूल्यों की संक्षिप्त मीमांसा इष्ट है। संबंधों का जीवन जीने वाला व्यक्ति पदार्थों में आसक्त बन जाता है। यह आसक्ति ही हिंसा एवं दुःख का मूल कारण है। इससे मुक्ति का उपाय है-अनासक्ति। अनासक्ति का अर्थ है-पदार्थ के साथ जुड़ी हुई चेतना का छूट जाना, उसके घनत्व का तनुकरण हो जाना, पदार्थ के साथ चेतना का सम्पर्क कम हो जाना। अनासक्त चेतना राग-द्वेष से उपरत होकर समता दृष्टि को पैदा करती है। यह समता दृष्टि ही जीवन में संतुलन पैदा करती है। सामुदायिक जीवन का आधारभूत तत्त्व है सहिष्णुता। इसके अर्थ को सूत्रात्मक शैली में महाप्रज्ञ ने प्रस्तुति दी . सहिष्णुता का अर्थ है-सामर्थ्य पूर्ण समायोजन। • सहिष्णुता का अर्थ है-शक्तिशाली होना। परिवर्तन की सशक्त कड़ी : मूल्य बोध । 341
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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