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________________ हृदय परिवर्तन के बिना व्यक्ति स्वातन्त्र्य को परिभाषित नहीं किया जा सकता और अहिंसा को भी समझा नहीं जा सकता । अहिंसा एवं हृदय परिवर्तन का मौलिक संबंध है अतः अहिंसा को समझने के लिए हृदय परिवर्तन को जानना जरूरी है । हृदय परिवर्तन के बिना वर्तमान की स्थितियाँ किस कदर नाजुक होती जा रही है जिसका चित्रण किया गया - जमींदार भूमिहीनों के प्रति करुणाशील नहीं है। मेधावी युवक रोजगार के अवसर से वंचित है। न्यायालय से न्याय की आशा क्षीण हो जाती है । राजनीतिज्ञ, पुलिस और अपराधियों का गठबन्धन यथार्थ पर पर्दा डाल देता है । हिंसा के बीजांकुरण के लिए ये स्थितियाँ उर्वर बन जाती हैं। जब-जब हिंसा फूटती है, उग्रवाद या आतंकवाद के सफाए की बात चल पड़ती है। दूसरी ओर अहिंसा में विश्वास रखने वाले उग्रवादी या आतंकवादी के हृदय परिवर्तन की बात सोचने लग जाते हैं। ये दोनों ही चिन्तन सफल नहीं होते । न दण्डात्मक नीति सफल होती है और न हृदय परिवर्तन की बात आगे बढ़ती है । अतः सम्यक् निदान के लिए समग्र प्रक्रिया का होना जरूरी है । जिक्र करते हुए महाप्रज्ञ ने बताया सर्व प्रथम संस्कार- परिवर्तन हो, संस्कार- परिवर्तन से विचार- परिवर्तन, विचारपरिवर्तन से हृदय परिवर्तन, हृदय परिवर्तन से स्थिति का परिवर्तन होता है। ऐसा नहीं है कि व्यक्ति को बदला नहीं जा सकता । प्रेक्षाध्यान के प्रयोगों से यह पूर्णतया सिद्ध हो चुका है कि व्यक्ति को बदला जा सकता है। उसके स्वभाव को, प्रवृत्तियों, रुचियों और आदतों को बदला जा सकता है यह बदलाव एकाएक घटित नहीं हो सकता उसके लिए सघन प्रयत्न की अपेक्षा रहती है। | 12 हृदय परिवर्तन के संबंध में महाप्रज्ञ की सोच सकारात्मक थी। उनका मानना था कि मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जिसने दिशा को बदला है, मौलिक वृत्तियों का परिष्कार किया है, हृदय का परिवर्तन किया है, चेतना का रूपान्तरण किया है। इन सारे संदर्भों के आलोक में कहा जा सकता है कि मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि है - हृदय का परिवर्तन, चेतना का रूपान्तरण और मौलिक मनोवृत्तियों का परिष्कार । I महाप्रज्ञ ने माना है कि हृदय परिवर्तन के आधार पर समाज में नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा हुई है । किसी प्राणी जगत् में नैतिक मूल्य जैसा कोई तत्त्व नहीं होता । आवश्यक भी नहीं है, क्योंकि उनके पास बुद्धि का इतना विकास नहीं है । जहाँ बुद्धि का विकास नहीं होता वहाँ नैतिक मूल्यों की स्थापना हो ही नहीं सकती । बुद्धि के द्वारा अनैतिक मूल्यों की भी स्थापना होती है । बेचारे दूसरे प्राणियों में बौद्धिक विकास नहीं है, तो अनैतिक मूल्य भी नहीं है । वे कभी मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करते। सदा बंधी- बंधाई मर्यादा में चलते हैं। वहाँ नैतिकता - अनैतिकता का प्रश्न नहीं है । मनुष्य ने अपनी बुद्धि के द्वारा ऐसे मूल्यों की स्थापना की जो समाज के लिए कल्याणकारी नहीं हैं, अकल्याणकारी हैं। दिशा परिवर्तन हुआ तो उसने नैतिक मूल्यों की स्थापना भी की। मर्यादा विहीन आचरण कहें या अनैतिक आचरण उसके प्रतिकार के लिए दण्ड व्यवस्था सभी प्राणियों के व्यवहार में है। प्राणियों की बात छोड़ दें, वनस्पति जगत् में भी दण्डशक्ति का प्रयोग चलता है । चींटियों में भी यह प्रचलित है। खोज करने पर यह स्पष्ट हुआ कि प्राणीमात्र में दण्डशक्ति का प्रयोग और बलप्रयोग दोनों चलते हैं। ऐसे वृक्ष होते हैं जो दण्डशक्ति का प्रयोग कर प्राणियों को फँसा लेते हैं । ऐसे वृक्ष हैं जिनकी पत्तियाँ पहले खुली होती हैं, फिर ज्योंही कोई प्राणी आकर उन पर बैठता है, वे सिकुड़ जाती हैं । प्राणी उसमें फँस जाता है । वे पत्तियाँ प्राणी को निचोड़ कर, निस्सार खोल को हृदय परिवर्तन एक विमर्श / 327
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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