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________________ के जो घटक निर्धारित किये गये हैं वे निम्न हैं-आसन और प्राणायाम । पद्मासन, शशांकासन, योगमुद्रा, वज्रासन, सर्वांगासन, मत्स्यासन, गोदोहिकासन आदि आसन नाड़ी तंत्र और ग्रंथितंत्र को प्रभावित करते हैं। इनके द्वारा हिंसा के शारीरिक उत्पादक तत्त्व क्षीण होते हैं। अनुलोम-विलोम, चन्द्रभेदी, नाड़ीशोधन, उज्जाई और शीतली आदि प्राणायाम शरीर में विषाणुओं का विरेचन करते हैं। परिणामतः शरीर स्वस्थ बनता है और अहिंसा विकास की प्रक्रिया सुगम हो जाती है। अहिंसा प्रशिक्षण का एक घटक है-'जीवनशैली का परिवर्तन।' जब तक अहिंसा की जीवन शैली को अपनाया नहीं जाएगा, आदमी सुखी और शांति से जी नहीं सकता। कितना भी धनी हो, कुबेरपति हो, अहिंसा की जीवन शैली यदि नहीं है तो व्यक्ति जीवन में दुःख ही भोगेगा, सुख उसे नसीब नहीं होगा। अगर जीवन शैली अहिंसा की हो जाए तो बहुत सारी समास्याओं का समाधान स्वतः हो जाएगा। इसके बिना अहिंसा के प्रशिक्षण की बात पूरी नहीं होगी। जीवन शैली के मुख्य नौ सूत्रों-सम्यक् दर्शन, अनेकान्त, अहिंसा, समण संस्कृति, इच्छा परिमाण, सम्यक् आजीविका, सम्यक् संस्कार, आहारशुद्धि व व्यसन मुक्ति, साधर्मिक वात्सल्य का अनुशीलन आवश्यक है। ___ हिंसा का एक बड़ा कारण है-मानसिक अस्वास्थ्य। 'हिंसा वह व्यक्ति करता है जो मानसिक दृष्टि से बीमार है।' मानसिक अस्वस्थता इन्द्रियों के उच्छृखल प्रयोग से पैदा होती है। अतः मानसिक स्वस्थता के लिए इन्द्रियों पर एक सीमा तक नियन्त्रण और आंतरिक वृत्तियों का शोधन अहिंसा विकास के लिए जरूरी है। शोधन-परिष्कार और नियन्त्रण, यही है अध्यात्म। इस दिशा में प्रस्थान किए विना अहिंसा के प्रशिक्षण की बात सफल नहीं होगी। अतः वृत्तियों और आश्रवों का शोधन है आन्तरिक शोधन। यह भीतर चले। बाहर में इन्द्रियों का प्रत्याहार (संयम) चलें। ये दोनों प्रक्रियाएं चलेगी तो अहिंसा के प्रशिक्षण की बात आगे बढ़ेगी। इसके साथ ही महाप्रज्ञ ने मानसिक प्रशिक्षण के महत्त्वपूर्ण साधनों का उल्लेख किया। उनमें प्रमुख हैं-ध्यान, कायोत्सर्ग, दीर्घश्वास-प्रेक्षा आदि। ये प्रयोग मानसिक एकाग्रता के विकास में सहयोगी बनते हैं। चंचलता जितनी कम उतनी ही हिंसा कम । चंचलता जितनी अधिक उतनी ही हिंसा अधिक। निर्दिष्ट प्रयोगों के द्वारा चंचलता को नियंत्रित कर मानसिक स्तर पर अहिंसा का विकास किया जा सकता है। अध्यात्म के आलोक में महाप्रज्ञ ने बताया कि-शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण से अधिक आवश्यक है भावनात्मक प्रशिक्षण। उसके साधन हैं-चैतन्य केन्द्र का ध्यान और आभामण्डलीय लेश्याध्यान। इन प्रयोगों के द्वारा शरीर के भीतर दो सूक्ष्म शरीर हैं-शटल बॉडी (तेजस शरीर) और शटलेट बॉडी (कार्मण शरीर)। अहिंसा के प्रशिक्षण के लिए इन शरीरों तक पहुँचना जरूरी है।" अनुप्रेक्षा के प्रयोग शारीरिक, मानसिक और भावात्मक-तीनों प्रशिक्षण के लिए उपयोगी है पर अहिंसा विकास के लिए पाँच अनुप्रेक्षाओं का अभ्यास अनिवार्य है • अभय की अनुप्रेक्षा . सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा . करुणा की अनुप्रेक्षा • मैत्री की अनुप्रेक्षा . स्वावलम्बन की अनुप्रेक्षा। इन अनुप्रेक्षाओं का प्रयोग भावात्मक अहिंसा को परिपुष्ट बनाता है। अहिंसा प्रशिक्षण का एक मौलिक घटक है-भावनात्मक परिवर्तन। प्रत्येक व्यक्ति में विधेयात्मक और निषेधात्मक-दोनों भावों के स्रोत विद्यमान रहते हैं। निषेधात्मक भाव हिंसा को जन्म देते हैं और विधायक भाव अहिंसा को। किस प्रकार इन निषेधक भावों को दिमाग से निकाल सकें और किस प्रकार हमारे मस्तिष्क में विधायक भावों को जमा सकें इस प्रकार क्रियान्विति के लिए एक प्रयोग अहिंसा की तकनीक : अहिंसा प्रशिक्षण / 319
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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