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________________ का मंतव्य है कि यदि आहार में मद्य-मांस का प्रयोग होता है तो उससे हिंसा की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा। ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय समाज को लें या बाहर के समाज को लें। जिन लोगों को लड़ाई में ज्यादा रहना पड़ा, जो सुरक्षा के मोर्चों पर रहे, लड़ना ही जिनका पेशा बन गया, उन क्षत्रियों के लिए मद्य और मांस की खुली छूट समाज ने दी। जब लड़ाई में ही रहना है तो शराब और मांस का सहारा अवश्य है। ऐसी स्थिति में क्रूर बनना पड़ेगा, दया और संवेदनशीलता खत्म करनी पड़ेगी। संवेदन हीन हुए बिना हिंसा हो ही नहीं सकती। वर्तमान में आतंकवाद के प्रशिक्षण में प्रशिक्षुओं को संवेदनहीन बनने का प्रशिक्षण दिया जाता है। आहार और हिंसा का संबंध है। इसे वैज्ञानिक धरातल पर प्रस्तुति मिली। आदमी जो भोजन करता है, उससे शरीर में अनेक प्रकार के रसायन वनते हैं। भोजन के द्वारा मस्तिष्क में न्यूरो-ट्रांसमीटर बनते हैं. जो तंत्र के संपोषक होते हैं। इनके द्वारा मस्तिष्क शरीर का संचालन करता है। वैज्ञानिकों ने चालीस प्रकार के न्यूरो-ट्रांसमीटरों का पता लगा लिया है। ये सारे भोजन से बनते हैं। भोजन के द्वारा एमिनो एसिड आदि अनेक प्रकार के एसिड बनते हैं। यूरिक एसिड जहर है वह भी भोजन से बनता है। जिस भोजन से विष अधिक बनता है, वैसा भोजन करने पर मानसिक समस्याएँ पैदा होती हैं, भावात्मक उलझने बढ़ती है और हिंसा की वृत्ति बढ़ती है। इस वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर हिंसक-अहिंसक चेतना के जागरण में भोजन की अहम भूमिका है। महाप्रज्ञ ने इस तथ्य की पुष्टि की कि प्राचीन काल में भोजन के इस पहलू पर बहुत विचार किया गया कि क्या खाने से क्या होता है। आज के वैज्ञानिक विश्लेषण ने इस पहलू के साथ-साथ दूसरे पहलू पर भी बहुत ध्यान दिया है कि किस प्रकार के भोजन की पूर्ति न होने पर क्या होता है। दोनों पहलू हमारे सामने हैं- . किस वस्तु के खाने से क्या होता है? . किस वस्तु की पूर्ति न होने पर क्या होता है? एक प्राचीन पहलू और एक नया पहलू है। एक आदमी बहुत चिड़चिड़ा है। चिड़चिड़ा क्यों है? इसकी खोज करने पर लगता है कि उसमें विटामिन 'ए' की कमी है। प्रति सौ क्यूबिक सेंटीमीटर में चीनी की मात्रा 90 से 110 मिलीग्राम होनी चाहिए। जिसमें इससे कम चीनी होती है, उसके शरीर पर असर आ जाता है। यदि अधिक कम होती है तो भावात्मक असर आता है. उसका स्वभाव बिगड जाता है। यहां तक कि वह आदमी हत्यारा चिड़चिड़ा बन जाता है। अनेक आदमी निराशा से ग्रस्त हो जाते हैं यह रसायनों की कमी के कारण होता है। आदमी डरता है। वह निरंतर भयग्रस्त होता है। भय लगने के अनेक कारण हो सकते हैं। उसमें एक कारण है-विटामिन 'बी' की कमी। इस प्रकार अनेक रसायन भय, अवसाद, हत्या आदि वत्तियों को पैदा करने वाले होते हैं। आध्यात्मिक और वैज्ञानिक विश्लेषण के साथ भोजन का विवेक अहिंसा प्रशिक्षण का महत्त्वपूर्ण बिन्दु बनता है। शरीर और अहिंसा का संबंध है अतः अहिंसा-शिक्षण का एक पहलू स्वास्थ्य-विवेक भी है। महाप्रज्ञ कहते मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य की बात को छोड़ दें, शारीरिक स्वास्थ्य का भी हमारी हिंसा और अहिंसा के साथ गहरा संबंध है। आज यह वैज्ञानिक अध्ययन का विषय बना हुआ है। अगर लीवर की क्रिया ठीक नहीं है तो व्यक्ति में हिंसा की भावना पैदा हो जाएगी। हाइपर एसिडिटी है तो बुरे विचार, बुरे भाव पैदा होते चले जाएंगे। रक्त में ग्लूकोज की कमी है तो आत्महत्या या दूसरों की हत्या की भावनाएँ पैदा होगी। स्नायुतंत्र का संतुलन नहीं है, अन्तः स्रावी ग्रन्थियों के रसायन संतुलित पैदा नहीं हो रहे हैं तो हिंसा की भावना पैदा हो जाएगी। इस सूक्ष्म मीमांसा के साथ स्वास्थ्य विवेक का ज्ञान अहिंसा-प्रशिक्षण की प्रविधि में अत्यन्त जरूरी है। शारीरिक प्रशिक्षण 318 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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