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________________ शस्त्रों के प्रयोग की विधियाँ बतलाई जाती हैं, परन्तु अहिंसा के प्रशिक्षण में सर्वप्रथम शस्त्र का परित्याग बतलाया जाता है। अहिंसा प्रशिक्षण संबंधी गांधी के विचारों को आचार्य महाप्रज्ञ ने वर्तमान के संदर्भ में गतिशीलता प्रदान की है। इसकी स्पष्ट झलक-हमने महात्मा गांधी के अहिंसात्मक प्रतिकार के सूत्र को प्रयोग में लाने का प्रयत्न किया है। सामान्यतः आदमी प्रतिशोध लेता है। प्रतिशोध की भावना होती है और प्रतिशोध की भावना प्रतिक्रियात्मक हिंसा को जन्म देती है। अगर प्रतिशोध के स्थान पर प्रतिकार भावना का विकास किया जाता तो हिंसा को बढ़ने का मौका कम मिलता। किन्तु प्रशिक्षण के अभाव में लोग उसका महत्त्व समझ नहीं पा रहे हैं, उसका मूल्यांकन नहीं कर पा रहे हैं। विशेष रूप से गांधी द्वारा पवित्र किये हुए स्थल और कक्ष में (असलाली ‘गुजरात' 25 नवम्बर, 2002 को) महाप्रज्ञ ने चाह प्रकट की कि इतिहास की पुनरावृत्ति हो, अहिंसात्मक प्रतिकार को आगे बढाया जाये तथा गांधी द्वारा निर्दिष्ट सत्रों के पनरूज्जीवन की चेतना जागे। उस कार्य को आगे बढ़ाये तो मेरा विश्वास है कि बढ़ती हुई हिंसा पर अंकुश लगाया जा सकेगा और अहिंसक वातावरण के निर्माण में समाज को अहिंसोन्मुखी बनाने में हम सक्षम हो सकेगें। विचारों के आलोक में अहिंसा प्रशिक्षण की पृष्ठभूमि को खोजा जा सकता है। यद्यपि महाप्रज्ञ इस कथन से बहुत पहले ही अहिंसाप्रशिक्षण की अनिवार्यता को आंक कर प्रयोग भूमि पर प्रतिष्ठित कर चुके हैं। अहिंसा प्रशिक्षण की प्रविधि एजाद कर आचार्य महाप्रज्ञ ने साम्यवाद के प्रवर्तक मार्क्स की अंतर अभिप्सा को आकार दे दिया। आर्थिक व्यवस्था के साथ हृदय-परिवर्तन अथवा आध्यात्म को न जोड़ने की कसक उनके जीवन के अंतिम क्षणों तक बनी रही। मार्क्स ने जीवन के संध्या काल में लिखा- 'मैं और एंगल्स-हम इस सच्चाई का अनुभव करते हैं कि अगर हम आर्थिक व्यवस्था के परिवर्तन के साथ हृदय-परिवर्तन या अध्यात्म को जोड़ते तो हमारा रास्ता बहुत अच्छा होता किन्तु यह सूत्र हमें जीवन के अंतिम समय में मिला। हम कुछ कर नहीं सके, हमारा काम अधूरा रह गया।' निश्चित रूप से हृदय परिवर्तन और आजीविका अर्जन की समवेत प्रस्तुति अध्यात्म के मंच से अहिंसा प्रशिक्षण के रूप में एक नई क्रांति है। यथार्थ का आकलन आज हिंसा का होना आश्चर्य नहीं है। वर्तमान संचार माध्यम जिस प्रकार के हिंसात्मक दृश्य दिखा रहे हैं, उससे हिंसा के भावों को उद्दीपन मिल रहा है, हिंसा के प्रशिक्षण की पूरी व्यवस्था है। इस स्थिति में हिंसा न हो तो आश्चर्य की बात है। वैसे देखें तो हिंसा की वृत्ति हर आदमी में विद्यमान है। महाप्रज्ञ का यह आकलन था अगर मैं कहूँ कि मुझ में हिंसा की वृत्ति नहीं है तो यह असत्य बात होगी। जब तक कोई वीतराग नहीं बन जाता, हिंसा की वृत्ति किसी न किसी अंश में उसमें जरूर रहेगी। एक होता है हिंसा की वृत्ति को उद्दीपन देना, उसे उभारना और एक होता है, उसे शांत करना। हिंसा की वृत्ति पर अंकुश लगाया जा सकता है, उसे शांत रखा जा सकता है। उसका सबसे बड़ा माध्यम है अहिंसा का प्रशिक्षण। आतंकवाद हिंसा के नये-नये रूप एजाद कर रहा है। पूरी दुनिया पर इसकी पकड़ बढ़ रही है, ऐसे में अहिंसा की डगर पर सबकी निगाहें टिकती है। ‘आतंकवाद देश के सामने बड़ी चुनौती' विषय पर आचार्य महाप्रज्ञ ने कहा-आतंकवाद आज हौवा बन गया है। हमें इस सच्चाई को समझना 310 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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