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________________ अपने हाथ है। आप किसी को छोटा नहीं मानते हैं तो आप स्वयं ही बड़े बन जाते हैं। 48 इस प्रकार सघन प्रयत्न हरिजनोत्थान की दिशा में संपादित हुए । राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से आचार्य महाप्रज्ञ कहते हैं 'वर्तमान युग में राष्ट्रीय हित के लिए जितना सहायक अणुव्रत आंदोलन हो सकता है उतना शायद दूसरा हमें खोजना होगा । अणुव्रत का नियम है, मैं जाति के आधार पर किसी को ऊँचा- नीचा नहीं मानूंगा, सम्प्रदाय के आधार पर किसी से घृणा नहीं करूँगा, किसी को नीचा दिखाने का प्रयत्न नहीं करूँगा, किसी की आलोचना नहीं करूँगा।' जब तक हमारे जीवन में ये मूलभूत बातें नहीं आती, तब तक हम एकता की बात सोच भी नहीं सकते।” इत्यादि मौलिक विचारों के आलोक में अणुव्रत आंदोलन की सक्रिय भूमिका देखी जा सकती है । चार प्रमुख आयाम अणुव्रत आंदोलन के समग्र कार्य-कलापों को चार भागों में गुंफित किया जा सकता है - 1. रचनात्मक 2. आंदोलनात्मक 3. संगठनात्मक 4. प्रचारात्मक | आंदोलन की रचनात्मक प्रवृत्तियों में राग-द्वेष, भय, दुर्व्यसन मुक्त, नैतिक मूल्यों को जीवन में अपनाने वाला तथा अहिंसक समाज-संरचना के लिए प्रयत्नशील अणुव्रती कार्यकर्ताओं का निर्माण मुख्य है 1 आन्दोलनात्मक पहलू से यह आन्दोलन भ्रूणहत्या, दहेज प्रथा, बाल-विवाह, मृत्युभोज, अस्पृश्यता, जातिवाद सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन के लिए नया मोड़ जैसे कार्यक्रम चलाता है । विशेष रूप से अथार्त माप-तौल, मिलावट, रिश्वत, मादक द्रव्यों के सेवन के विरुद्ध आवाज उठाता है, जनमत का निर्माण करता है । दहेज प्रथा उन्मूलन के लिए प्रस्तुत आंदोलन प्रयत्नशील है । अपनी सभाओं में महाप्रज्ञ बेबाक कहते-बहुएँ क्यों जल रही है ? यह एक ज्वलंत प्रश्न है । सुविधावाद, बिना परिश्रम बटोरने की मनोवृति, प्रदर्शन और बड़प्पन- ये बड़ी-बड़ी घाटियाँ है जो समाधान के रोड़े है । जो लोग श्रम से जी चुराते है, अथवा आर्थिक अभाव का जीवन जी रहे हैं वे दहेज में समाधान खोजते हैं। मोटर साईकिल, स्कूटर, कार, रेडियो ट्रांजिस्टर, टी. वी., रेफ्रिजरेटर आदि की पूर्ति दहेज में हो, इस धारणा ने पदार्थ का मूल्य बढा दिया और विवाहित युवती का अवमूल्यन कर दिया। प्राचीन काल से चली आ रही दहेज की व्यवस्था पहले स्वाभाविक थी, अब यह बहुत विकृत बन गई है। अणुव्रत आंदोलन में दहेज की विकृति मिटाने के लिए दो उपाय सुझाए गए हैं- • दहेज के लिए ठहराव न करना । • दहेज का प्रदर्शन न करना। इन दो उपायों को विस्तार दें तो कुछ संभावनाओं के बारे में सोचा जा सकता है। दहेज का निर्धारण विवाह से पूर्व हो चिंतन का पहला बिंदु है- विवाह के साथ दहेज का संबंध न रहे, चिंतन का दूसरा बिंदु है- विवाह के अवसर पर देने की प्रथा को समाप्त किया जाए। इस हेतु एक विवाह - कक्ष का नियोजन अणुव्रत समिति के अंतर्गत बने । उस कक्ष का काम होगा - जनता से संपर्क, अणुव्रत के संकल्पों को जन-जन तक पहुँचाना और विवाह को दहेज के दानव से मुक्त करना। समाधान की सबसे बड़ी कठिनाई उनकी दृष्टि में यह है कि महिलाएं स्वयं महिलाओं को प्रताड़ित करती हैं । यदि सास बदल जाए तो बहुओं का जलना बंद हो जाए। अणुव्रत समिति के 296 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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