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________________ समाज नया मोड़ ले, इस पर विचार-विमर्श किया गया। रूढ़ियों से चिपका कोई भी समाज रमणीय नहीं हो सकता। रूढ़ि कोई बुराई नहीं है। पर वह रूढ़ि, जिसकी उपयोगिता समाप्त हो जाए, बुराई बन जाती है। समाज में ऐसी अनेक रूढ़ियाँ हैं, उनके चलते चरित्र-विकास संभव नहीं। है कि समाज नया मोड़ ले।" विमर्श पूर्वक रूढ़ि उन्मूलन हेतु 'नया-मोड़' का कार्यक्रम दिया। मेवाड़ की ऐतिहासिक धरा नौचौकी-राजसमंद की भूमि से इस अभियान को विधिवत कार्यकारी बनाया गया। जिसमें विशेष रूप से पर्दा, मृत्युभोज, प्रथारूप से रोना, विधवाओं के काले वस्त्र और उनका तिरस्कार, विवाह आदि प्रसंगों पर होने वाले वृहत् भोज, दहेज, ठहराव और प्रदर्शन, तपस्या के उपलक्ष में होने वाले आडम्बर आदि विषयों पर एक समाजव्यापी अभियान चलाया गया। उसमें कुप्रथाओं से होने वाली तथा धार्मिक जीवन में उत्पन्न होने वाली समस्याओं के प्रति ध्यान आकर्षित किया गया। इस कार्यक्रम के आशातीत परिणाम आये। इसका अगला चरण है- 'जैन संस्कार विधि', जो जन्म, विवाह, मृत्यु, आदि के प्रसंग पर महत्वपूर्ण काम कर रही है। अणुव्रत आंदोलन के रचनात्मक कार्यों की एक लम्बी सूची है। उनमें से महत्त्वपूर्ण पहलुओं को ही विमर्श का विषय बनाया गया है। जातिवाद का उन्मूलन अणुव्रत आंदोलन के धर्मचक्र ने भारतीय जन-मानस में जकड़ी जातिवाद की बेड़ियों को तोड़ने का सार्थक प्रयत्न किया। भगवान महावीर का उद्घोष-'एक्का मणुस्सजाइ' मनुष्य जाति एक है। यह पुनर्प्रतिष्ठा की राह पर उपेक्षित बना क्रांति की बाट जो रहा था। सहसा अणुव्रत आंदोलन का ध्यान उस ओर टिका। अनुशास्ता स्वयं हरिजनों की बस्तियों में गए और साधु-साध्वियों को भेजा। हरिजन बन्धु प्रवचन पंडाल में आने लगे। उनके सम्मेलन किये गये, जिसमें हजारों हरिजनों ने भाग लिया। इस कार्य में समाज का विरोध भी सहना पड़ा। - हरिजनों के संस्कार निर्माण के अनेक प्रयत्न किये गये। इस प्रवृति को विकासशील बनाने हेतु 'भारतीय संस्कार निर्माण समिति' गठित की गई। उसके माध्यम से अनेक हरिजनों के शिविर आयोजित हुए। उनमें आहार-शुद्धि, व्यसन-मुक्ति, हीन भावना का परित्याग आदि विषयों का प्रशिक्षण दिया गया। जातिवाद की अतात्त्विकता को आम जनता के गले उतारने की आकांक्षा से अणुव्रत शास्ता ने स्वयं शूद्रों के घरों में भिक्षा ग्रहण की। जात-पाँत के आधार पर स्वयं को निम्न मानने वाले लोगों की चेतना को जगाते हुए अणुव्रत के मंच से आवाज उठाई-‘आपमें जो स्वयं को हीन समझने की भावना घर कर गई, यही आपके लिए अभिशाप है। जहाँ एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के लिए अस्पृश्य या घृणा का पात्र माना जाये, वहाँ मानवता का नाश है। आप अपनी आदतों को बदलें। मद्य मांस आदि बुरी वृत्तियों को छोड़ दें। जीवन में सात्विकता लायें। फिर आपकी पावन वृत्तियों को कोई भी पतित या दलित कहने का दुस्साहस नहीं करेगा।' उत्थान की अभिप्सा से उन्हें यह भी बताया गया-'छुआछूत की धारणा मानसिक हिंसा है। यह हिंसा आज समाज का विघटन कर रही है। इस विघटनकारी तत्त्व को समाप्त करना बहुत जरूरी है। यह मुझे जानकर अति आश्चर्य हुआ कि हरिजनों में भी आपस में छुआछूत चल रहा है। जब आपकी इस बीमारी से पीड़ित हैं, तब हम दूसरों से क्या कहें? आप इस धारणा को अपने मन से निकालें। इस मिथ्या धारणा को छोड़कर ही आप बड़े बन सकते हैं। अपना बड़प्पन अहिंसा का आंदोलनात्मक स्वरूप / 295
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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