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________________ सब कुछ बाहर से आयात किया जा सकता है पर चारित्र का आयात नहीं किया जा सकता है। इसके लिए व्यक्ति-व्यक्ति को अपने जीवन में छोटे-छोटे चारित्रिक मूल्यों की आवश्यकता हैं। छोटी-छोटी बातों के सुधार के बिना हम बड़े कार्यों को नहीं कर सकते। आवश्यकता इस बात की है कि नैतिकता की अलख नये सिरे से जगाई जाये। ऊहापोह हुआ। ‘समूचे विश्व को सुधारने में बड़े अवतार भी समर्थ नहीं हुए हैं और कर्तव्य-निष्ठा मेरी भी कम नहीं है, फिर चरित्र विकास की प्रेरणा मैं (तुलसी) क्यों न दूं।'32 भावों के स्फुलिंग आंदोलन के सेतु बनें। ___अणुव्रत शास्ता का पादविहरण जीवन व्रत था। एकदा राजस्थान के सीमावर्ती गाँवों में उन्होंने लोगों से पूछा-'भाई, तुम्हारे यहां खेती कैसी होती है?' उत्तर मिला-'बाबा! अच्छी होती है।' फिर तुम्हारे कपड़े फटे और मकान टूटे क्यों? एक साथ कई बोल पड़े-'बाबा! हमें तो मोसर (मृत्यु के उपलक्ष में वृहद् भोज) खा जाता है। उसमें दो-तीन-चार हजार रूपये लग जाते हैं।' जिज्ञासु भाव से पूछा- 'क्या वह करना जरूरी है?' 'हां, बाबा! वह तो करना ही पड़ता है। कोई न करे तो लोग कहते हैं- यह तो घर बैठे रोटी खा रहा है और इसका दादा मसान में पड़ा सड़ रहा है। और भी न जाने क्या-क्या कहा जाता है। ऐसे अनेकशः प्रसंगों ने अनुशास्ता के हृदय को द्रवित किया। अपनी सीमा में रहते हुए कुछ व्यापक करने की चाह जगी। दूसरी ओर देश की आजादी के साथ में नैतिक-चारित्रिक उत्थान की अनिवार्यता मुखर हो उठी। मौलिक समस्याओं का आवरण हटने लगा, वे क्रमशः उभरने लगी। जातिवाद, अस्पृश्यता, साम्प्रदायिकता, अमीरी, गरीबी, महंगाई और भिखमंगी ये हिन्दुस्तान की मौलिक समस्याएँ हैं। अनुशासन हीनता, पदलिप्सा, महत्त्वाकाँक्षा, प्रान्तीयता और भाषाई विवाद ये स्वतंत्रता के बाद उपजी हुई समस्याएँ हैं। विभिन्न समस्याओं के पलते सामाजिक, धार्मिक और राष्ट्रीय सभी क्षेत्रों में असंतोष व्याप्त था। भ्रष्टाचार का बोलबाला और नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा था, अतः ऐसे आंदोलन की आवश्यकता थी जो राजनैतिक स्वार्थों से उपरत प्रशस्त जन-जागरण को जन्म दे। नैतिक-मूल्यों के गिरते ग्राफ को रोक सके। इन्हीं अपेक्षाओं के बीच अणुव्रत आंदोलन अस्तित्व में आया। विराट् लक्ष्य तुच्छ स्वार्थ सीमित दायरे से उपरत अणुव्रत आंदोलन का विराट् लक्ष्य है-जाति, वर्ण, सम्प्रदाय, देश, रंग, लिंग भाषा के भेद-भाव से मुक्त मनुष्य मात्र को आत्म संयम की ओर प्रेरित करना। शोषण विहीन स्वस्थ समाज की संरचना करना। वैयक्तिक, कौटुम्बिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय जीवन में नैतिकता और ईमानदारी प्रतिष्ठित करना। अनीति, अनाचरण और अप्रामाणिकता से जर्जरित लोक जीवन में सदाचरण एवं प्रामाणिकता का संचार करना। व्यक्तिशः और सामूह चेतना में अहिंसा और संयम के संस्कार भरना। यह मानव में मानवीय गुणों का संचार कर उसे सच्चा इंसान बनाना चाहता हैं। अणुव्रत समाज के प्रत्येक वर्ग में व्याप्त बुराइयों को मिटाकर उसे स्वस्थ बनाना चाहता है। आंदोलन के उद्देश्य बाबत अनुशास्ता के लब्ज हैं- 'अहिंसा को आदर्श मानकर चलने वाला चरम अहिंसा तक न पहुँच सके, फिर भी नीति-भ्रष्ट नहीं होता। इस उद्देश्य से अणुव्रत आंदोलन चलाया गया। पवित्रता की आखिरी मंजिल को कोई माने या न माने, वहाँ तक पहुँचने का प्रयत्न करे या न करे किन्तु पवित्रता की पहली मंजिल सबके लिए समान है।...अणुव्रत की साधना जीवन पवित्रता अहिंसा का आंदोलनात्मक स्वरूप | 289
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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