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________________ का दूसरे देश पर शोषण भी समाप्त होगा। विकसित, अविकसित, अर्धविकसित राष्ट्रों के बीच पनपने वाली आर्थिक विषमता का अन्त होगा। अतः सामाजिक, आर्थिक शांति के लिए भी स्वदेशी महत्त्वपूर्ण प्रविधि है। अपेक्षा है गांधी के विराट् स्वदेशी दृष्टिकोण को पुनः प्रतिष्ठित करने की। स्वदेशी के जरिये विशाल मानव शक्ति, पशुशक्ति और प्राकृतिक संपदा का सम्यक् उपयोग आम जन-जीवन को सरल-सुखी और शांतिपूर्ण बनाने में महत्वपूर्ण है। अणुव्रतः एक नैतिक पैगाम 'सत्यं-शिव-सुंदरं' की समृद्ध संस्कृति से सुविख्यात भारत-भू को हर युग में आलोकित करने वाले संत-महर्षियों का सुयोग सुलभ रहा है। परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्ति का वरण करते ही युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी ने स्वतंत्र भारत के नागरिकों में मानवीय मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा हेतु नैतिक-चारित्रिक पथ-दर्शन का बीड़ा उठाया। भारतीयता की शान संत भूमिका को उजागर करते हुए संतशिरोमणि तुलसी ने 2 मार्च, 1949 को अणुव्रत आंदोलन का विधिवत् सूत्रपात राजस्थान के कस्बे सरदारशहर में किया। पूर्व पीटिका के रूप में भारत स्वतंत्रता के प्रथम दिवस (15 अगस्त, 1947) पर, वे 'असली आज़ादी अपनाओं' का शंखनाद कर चुके थे। असली आजादी का तात्पर्य था-नैतिक-चारित्रिक विकास । उसके बिना आजादी का आनंद अधूरा होगा। अखंड आनंद का प्रायोगिक रूप है अणुव्रत आंदोलन। अणुव्रत आंदोलन मानवीय व्यवहार को नैतिकता, प्रामाणिकता, सदाचार, सौहार्द और भाईचारे से सराबोर बनाने वाला एक अलाउद्दीन चिराग है। जिसे अपनाकर तब से अब तक लाखों लोगों ने अपने जीवन को रोशन किया है। यह व्यक्ति, समाज और राष्ट्रव्यापी दिव्यता को शतगुणित करने वाला नैतिक पैकेज है। विश्वभर में गतिशील विभिन्न आंदोलनों से इसका लक्ष्य, स्वरूप, प्रक्रिया सर्वथा विशिष्ट है। इसकी चुंबकीय आकर्षण शक्ति का सबूत है-आंदोलन के श्रीगणेश के साथ प्रथम आह्वान पर इकहत्तर (71) व्यक्तियों द्वारा 'अणुव्रत आचार-संहिता' के नियमों का स्वीकरण। अणुव्रतियों की आदिम संख्या ने सबको आश्चर्य चकित किया। आज इसके आराधक, अनुपालक सदस्यों की संख्या लाखों के पार है। विमर्थ्य आंदोलन स्वर्ण जयंती को मनाकर के भी वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सामयिकता बरकरार रखे हुए है। इसमें अत्याधुनिक जटिल, विध्वंसकारी प्रवृत्तियों एवं विश्वव्यापी आतंकवाद के खिलाफ अहिंसक क्रांति का सिंहनाद कर समाधान की नूतन दिशोद्घाटन का मादा है। आंदोलन के प्रवर्तक आचार्य तुलसी है पर इसके दर्शनपक्ष के प्राण प्रतिष्ठापक बनने का श्रेय महायोगी आचार्य महाप्रज्ञ को मिला। जिन्होंने आंदोलन की समग्र प्रस्तुति में अपनी प्राज्ञशक्ति का नियोजन कर समयोचित विस्तार दिया। सापेक्ष दृष्टि से अणुव्रत आंदोलन को महाप्रज्ञ के अहिंसक विचार विथी में संयोजित किया गया है। आंदोलन की पृष्ठभूमि बदलते परिवेश में प्राच्य मूल्यों का समावेश वक्त की पुकार है। नैतिकता, जो आध्यात्मिकता का समाजीकृत रूप है, का स्वतंत्र मूल्य है। वह सहज अपेक्षित है। जबकि मनुष्य का चिंतन अर्थवादी और मन सुविधावादी बनता है, तब नैतिकता का आंदोलन जरूरी हो जाता है और चरित्र-विकास सापेक्ष हो जाता है। 288 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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