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________________ अहिंसा का राष्ट्रीय - अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप अहिंसा के आदर्श पर विनिर्मित अथवा अनुचारी राज्य विश्व के नक्से का सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्र होगा । उसकी शक्ति किसी भौतिक विकास पर नहीं अहिंसा की सूक्ष्म अध्यात्म शक्ति से अनुप्राणित होगी। भारतीय संदर्भ में अहिंसा का अनुबंध सनातन है । काल के आरोह-अवरोह में इसकी स्थितियाँ भले ही बदलती रहीं पर आदर्श का सर्वथा लोप नहीं हुआ। गांधी ने परतंत्र भारत की मुक्ति का राज अहिंसा के सनातन सिद्धांत में झांका और राष्ट्र की जनता को इस ओर गतिमान किया। उन्होंने इसमें न केवल भारत की अपितु पूरी दुनिया के क्षेम-कुशल की दैविक कल्पना की है। आचार्य महाप्रज्ञ अहिंसा में राष्ट्र विकास को आंकते है । उभय मनीषियों ने राष्ट्र के निर्माण, विकास और खुशहाली हेतु अहिंसा को अपरिहार्य माना है । गांधी के लिए अहिंसा न केवल साध्य थी अपितु आजादी की साधना का अनिवार्य अंग बनी। भारतीय आजादी की प्रक्रिया में विभिन्न आयाम अहिंसा प्रधान अथवा निखालस अहिंसा के आदर्श पर संचालित थे । राज्य स्वरूप 1 गांधी की राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सोच राज्य व्यवस्था स्वतः स्फूर्त है। उनका राष्ट्र संबंधी चिंतन मानव प्रेम से जुड़ा हुआ था । वे कहा करते मैं देशप्रेमी हूं, क्योंकि मैं मानव-प्रेमी हूँ। मेरा देशप्रेम वर्जनशील नहीं है।.......देशप्रेमी की जीवन नीति किसी कुल या कबीले के अधिपति की जीवन-नीति से भिन्न नहीं है । और यदि कोई देशप्रेमी उतना ही उग्र मानव-प्रेमी नहीं है, तो कहना चाहिये कि उसके देश-प्रेम में उतनी न्यूनता है । वैयक्तिक आचरण और राजनीतिक आचरण में कोई विरोध नहीं है; सदाचार का नियम दोनों को लागू होता है । " स्पष्ट रूप से गांधी का राष्ट्रीय चिंतन मानवप्रेम की धुरी पर टिका था । अतः उनका राजनैतिक विचार विश्व राजनीति को प्रभावित करने वाला ही नहीं उसे उपकृत करने वाला भी था । स्वराज्य के संबंध में उन्होंने जितना विस्तृत उल्लेख किया उतना अहिंसक राज्य के संबंध में उपलब्ध नहीं है। संभव है वर्तमान की राज्य व्यवस्था से गांधी का चिंतन विशिष्ट रहा हो ? पर आंशिक विचार जो राज्य संबंधी उपलब्ध है उसका चित्रण प्रासंगिक होगा। गांधी से प्रश्न किया गया 'अहिंसा द्वारा राज्य संचालन कैसे किया जाय ?' उन्होंने कहा - 'यह प्रश्न पूछते समय आप एक बात, अहिंसक स्वराज्य की प्राप्ति को स्वीकार कर लेते हैं । यह समझ में आता है क्या ? यदि हमने सचमुच अहिंसक मार्ग से स्वराज्य प्राप्त किया होगा तो हममें से अधिकतर लोग अहिंसक बन चुके होंगे और हमारे 250 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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