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________________ चीज ही न होगी । उस राज्य में स्त्री का पद पुरुष के समान ही होना चाहिए। यह एक ही देश या जनता के लिए नहीं बल्कि सारी दुनिया के उत्तम राज्य का आदर्श है। यदि एक जगह भी वह सिद्ध हो जाय तो फिर उसकी छूत सारी दुनिया में फैल जानी चाहिये । यह स्थिति आने पर भिन्नभिन्न राज्यों में झगड़े का कारण ही न रहेगा अर्थात् युद्ध जैसी चीज ही न रह सकेगी। सारे मतभेद, विरोध, झगड़े अहिंसक ही निपटा करेंगे। 43 इस प्रकार की उत्तम व्यवस्था ही गाँव के विकास में योगभूत बन सकती है और अहिंसक व्यवस्था का गौरव पा सकती है। क्योंकि इसमें दंड, ताड़ना के लिए नहीं व्यक्ति का हृदय बदलने के लिए दिया जायेगा । अहिंसक समाज के स्वप्न को साकार बनाने की प्रक्रिया में शांति सेना का गठन गांधी की अहिंसक सोच का प्रायोगिक उपक्रम था । दंगा-फसाद-अशांत वातावरण को अहिंसक रीति से नियंत्रित करने में शांति सेना की भूमिका महत्वपूर्ण है उसका सैनिक जिस आस्था और लगन से अहिंसात्मक कारवाई करने के लिए संकल्पबद्ध होता है उसके परिणाम सकारात्मक निकलते हैं । रचनात्मक कार्यों के संपादन में शांति सेना की भूमिका अहिंसक समाज को साकार करने में योगभूत बनती है। हिंसा के प्रतिकार, सामाजिक न्याय के उत्थान और मानव के अमन-चैन हेतु अहिंसक समाज की सुरक्षा-व्यवस्था के संबंध में महाप्रज्ञ का अभिमत है कि व्यवस्था का स्वरूप नियन्त्रण है। उसमें स्थिति के समीकरण की क्षमता है। इसलिए व्यवस्था के परिणाम से अहिंसा को नहीं आंकना चाहिए। उसकी सफलता जीवन की पवित्रता में निहित है । स्वतन्त्रता की रक्षा अहिंसा से हो सकती है। हिंसा या दण्ड-शक्ति की माया जितनी बढ़ती है, उतनी ही परतन्त्रता बढ़ती है। 14 अहिंसक समाज व्यवस्था में आत्मा की पवित्रता का लक्ष्य प्रमुख रहे ओर दण्ड - शक्ति का प्रयोग कम-से-कम किया जाये ताकि प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता सामाजिक धरातल पर सुरक्षित रह सके । क्या अहिंसक समाज सुरक्षा के लिए पुलिस और सेना पर निर्भर होगा या उसे उनकी अपेक्षा नहीं होगी ? इस संबंध में महाप्रज्ञ ने कहा अहिंसक समाज की स्थापना होने पर आंतरिक मामलों में सेना के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होगी और पुलिस की आवश्यकता भी कम-से-कम होगी। अहिंसक समाज में अणुव्रत का यह व्रत अनिवार्यतः पालनीय होगा- 'मैं किसी पर आक्रमण नहीं करूँगा और आक्रमक नीति का समर्थन भी नहीं करूँगा ।' अहिंसक समाज में सेना आक्रामणकारी नहीं होगी। उसका काम केवल अपनी सीमा की सुरक्षा करना ही होगा। 145 कथन में गांधी के मंतव्य की प्रतिध्वनि है। सम्यक् व्यवस्था का निपात सामाजिक समृद्धि का परिचायक है । जिस समाज में उचित व्यवस्थामर्यादा का अभाव होता है वह उच्छृंखल समाज होता है । वहाँ अनेक तरह के अमानुषिक व्यवहार पनपते हैं परिणामतः लोगों की शांति भंग होती जाती है। ऐसी स्थिति में अहिंसा के विकास का सामाजिक, नैतिक उत्थान का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है । इस विषय में आचार्य महाप्रज्ञ का मौलिक चिंतन रहा है कि 'अहिंसक समाज में भौतिक व्यवस्थाओं के समीकरण के साथ आन्तरिक परिवर्तन की आध्यात्मिक प्रक्रिया समन्वित होगी, इसलिए वह शासन मुक्ति की ओर सतत गतिशील होगी।' सच्चे अहिंसक समाज के सदस्य आत्मानुशासन से भावित होंगे। उन पर बाह्य नियन्त्रण की अपेक्षा स्वतः सिमटती जायेगी । आचार्य महाप्रज्ञ ने इस बात की समीक्षा भी की कि शासनमुक्त समाज की रचना में सबसे बड़ी बाधा है व्यक्ति की संग्रह-परायण मनोवृत्ति। मनीषियों के सुरक्षात्मक व्यवस्था पक्ष में समानता और वैशिष्ट्य का संगम है। गांधी ने बाह्य व्यवस्था पक्ष का चित्रण किया वहीं 248 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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