SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गांधी के समाजवादी विचारों में अनुभूति का आलोक और ऋषि-परंपरा का आदर्श है । उन्होंने कहा- 'मेरा समाजवाद किताबों का नकली समाजवाद नहीं, सहज और स्वाभाविक समाजवाद है । अहिंसा में मेरी आस्था से वह उत्पन्न हुआ है । अहिंसा का आचरण करने वाला ऐसा कोई आदमी हो ही नहीं सकता, जो सामाजिक अन्याय का विरोधी न हो ।' स्पष्ट रूप से उनके समाजवाद में व्यक्ति का विरोध नहीं, समाज में पलने वाली गलत रुग्ण प्रथा-परंपरा का विरोध था । सरल शब्दों में उनका समाजवाद स्वस्थ परंपरा का परिपोषक एवं वैयक्तिक शांति का पक्षधर था। गांधी के सर्वोदयसमाज प्रकल्प को महाप्रज्ञ के संस्कारक्षम, स्वस्थ समाज परिकल्पना में झांका जा सकता है। संस्कारक्षम, स्वस्थ समाज अहिंसामूलक संस्कारक्षम समाज की परिकल्पना आचार्य महाप्रज्ञ की निर्मल सोच से निष्पन्न है। इसमें मौलिकता और सामयिकता का अद्भुत संगम है। संस्कारक्षम समाज की पृष्ठभूमि को प्रकट करते हुए उन्होंने बताया-अहिंसा शब्द जैसे ही सामने आता है, अनेक भ्रान्तियों का जाल सामने आ जाता है । अहिंसा के सन्दर्भ में कौन-सा सिरा थामें, यह आम लोगों के लिए जानना कठिन है । अहिंसा का प्रारंभ बिन्दु है-हिंसा का संकल्प मन में न आए। संकल्पजा हिंसा न हो, मानसिक, वैचारिक और प्रतिक्रियात्मक हिंसा न हो । साथ ही उन्होंने इस बात पर बल दिया कि जीवन-शैली को अहिंसक बनाने के लिए अल्पेच्छा, अल्पारंभ और अल्पपरिग्रह का सिद्धान्त पूर्ण प्रासंगिक है । 130 समाज के स्तर पर यह आवश्यक है । समाज में हिंसा पनपने के जब तक आधार विद्यमान रहेंगे तब तक पूर्ण अहिंसक समाज की कल्पना नहीं की जा सकती । समाज व्यापी हिंसा के उत्प्रेरक तत्त्वों का जिक्र करते हुए महाप्रज्ञ कहते है 'जातिवाद, रंगभेद, गरीबी, क्षेत्रवाद - इन पूर्वाग्रहों से ग्रस्त समाज समय-समय पर हिंसा की आग में ईंधन डालता रहता है। जातिवाद और रंगभेद के सर्पदंश से छुटकारा पाने के लिए मानवीय एकता के विकास का प्रशिक्षण अत्यन्त अपेक्षित है।' इतिहास के केनवास पर इसे आंका जा सकता है। समाज में व्याप्त विजातीय तत्त्वों का परिष्कार हो इस हेतु महापुरुषों ने समय-समय पर सामाजिक अहिंसक क्रांति का स्वर बुलंद किया। भगवान महावीर को उद्धृत करते हुए महाप्रज्ञ ने कुछ मौलिक तथ्यों का उल्लेख किया 1. उस समय दास प्रथा चालू थी । सम्पन्न मनुष्य विपन्न मनुष्य को खरीदकर दास बना लेता था। महावीर ने इस हिंसा के प्रति जनता का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने एक सूत्र दिया-दास बनाना हिंसा है, इसलिए किसी को दास मत बनाओ । 2. उस समय के पुरुष स्त्रियों को और शासक वर्ग शासितों को पराधीन रखना अपना अधिकार मानते थे। महावीर ने इस ओर जनता का ध्यान खींचा कि दूसरों को पराधीन बनाना हिंसा है। उन्होंने अहिंसा सूत्र दिया - दूसरों की स्वाधीनता का अपहरण मत करो । 3. उच्च और नीच ये दो जातियां समाज-व्यवस्था द्वारा स्वीकृत थी । उच्च जाति नीच जाति से घृणा करती थी । उसे अछूत भी मानती थी । महावीर ने इस व्यवस्था को अमानवीय करार दिया। उन्होंने बलपूर्वक कहा- जाति वास्तविक नहीं है । जाति-व्यवस्था परिवर्तनशील है, काल्पनिक है। इसे शाश्वत का रूप देकर हिंसा को प्रोत्साहन मत दो। किसी मनुष्य अहिंसक समाज : एक प्रारूप / 241
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy