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________________ दृष्टि से विचार करें तो दोनों एक ही हैं । समाज - व्यक्ति विकास की दृष्टि से दोनों के विकास का एक बड़ा आधार सूत्र बनता है अहिंसा । जहाँ समाज है, वहाँ आश्वासन बहुत जरूरी है । अहिंसा सबसे बड़ा आश्वासन है । अहिंसा के द्वारा आश्वासन तब मिलता है, जब वातावरण भयमुक्त होता है । इसीलिए भगवान महावीर ने बार-बार कहा - किसी से डरो मत। उपनिषद् में कहा गया - सारी दिशाएँ मेरी मित्र है । मैत्री और अभय के संस्कार जितने सघन बनते हैं, अहिंसा की चेतना उतनी ही पुष्ट बनती है। 125 समग्र दृष्टि से समाज रचना के आधार का आकलन करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने बताया वैयक्तिक विशेषताओं की उपेक्षा कर केवल समाज रचना की कल्पना करने वाले अपनी कल्पना को साकार नहीं कर पाते । यदि समाजवाद और साम्यवाद के साथ जन्मजात वैयक्तिक विशेषताओं (शरीर रचना, आनुवंशिकता, मानसिक चिन्तन की शक्ति, भाव, संवेदन, संवेग, ज्ञान अथवा ग्रहण की क्षमता) का समीकरण होता तो समाज रचना को स्वस्थ आधार मिल जाता है । समाजीकरण के लिए जिन आधार सूत्रों की आवश्यकता है, वे जन्मजात वैयक्तिक विशेषताओं से जुड़े हुए हैं । समाज रचना का एक आधार है- परस्परोपग्रह अथवा परस्परावलंबन । समाज रचना का दूसरा आधार है-संवेदनशीलता । समाज रचना का तीसरा आधार है- स्वामित्व की सीमा । समाज रचना का चौथा आधार है-स्वतंत्रता की सीमा । समाज रचना का पाँचवाँ आधार है-भाव का विकास, बौद्धिक विकास, चिन्तन का विकास, शिल्प और कला का विकास । संग्रहनय अभेद प्रधान दृष्टि है। उसके आधार पर समाज निर्माण होता है । व्यवहार नय भेद प्रधान दृष्टि है उसके आधार पर व्यक्ति की वैयक्तिकता सुरक्षित रहती है। व्यक्ति और समाज-दोनों के समन्वय पूर्वक यदि व्यवस्था, नियम, कानून बनाया जाए तो उसका अनुपालन सहज और व्यापक होगा। 126 • • • . सर्वोदय समाज संगठित समाज की मीमांसा के साथ अपनी स्वतंत्र सोच के आधार पर जिस सर्वोदय का चित्रांकन गांधी ने किया उसको जाने बिना अहिंसक समाज रचना का ज्ञान अधूरा होगा । सर्वोदय समाज की पृष्ठभूमि में 'सर्वोदय' शब्द को समझना जरूरी है। यह एक ऐसा गूढ़ार्थ शब्द है जिसमें आत्मिक, नैतिक, वैयक्तिक, सामाजिक, राजनैतिक सह वैश्विक विकास के सूत्र निहित हैं । सर्वोदय का शाब्दिक अर्थ है - सबका उदय, सब प्रकार से उदय एवं सबके द्वारा उदय । इसके बीज सूत्र प्राचीन ग्रंथों में खोजे जा सकते हैं . • वेद सभी प्राणियों के उदय की बात करते हैं । महाभारत- 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भागभवेत । ।' ईशावास्योपनिषद् के प्रथम श्लोक में'ईशावास्यमिद्म सर्वं यत् किंचित जगात्यां जगत । तेन व्यक्तेन भुंजीथाः मा गृथः कश्यचिद् धनम् ।।' अहिंसक समाज : एक प्रारूप / 239
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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