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________________ अहिंसक समाज : एक प्रारूप मानव जाति के अस्तित्त्व की कहानी अहिंसा के आलेख से निष्पन्न हुई है। अहिंसा का समूहगत प्रयोग किया गया उस दिन मानव-समाज का आकार प्रकट हुआ। इसके आधार पर 'अहिंसक-समाज' का प्रारूप विकसित हुआ। महात्मा-गांधी एवं आचार्य महाप्रज्ञ-दोनों मनीषियों ने अहिंसक समाज के संदर्भ में अपने-अपने विचार प्रस्तुत किये हैं। विचारों में मौलिकता और समानता का निदर्शन है। गांधी की सामाजिक मूल्यों के अन्वेषण की दृष्टि वैज्ञानिक थी। एक वैज्ञानिक घटनाओं और तथ्यों के पर्यवेक्षण के आधार पर कल्पना करता है, फिर उसे प्रयोगों से सिद्ध करता है, वैसे ही उन्होंने सामाजिक समस्याओं के संदर्भ में प्रयोग और परीक्षण किए। अपने परिपार्श्ववर्ती सहजीवन को प्रयोगशाला बनाकर अपने निष्कर्षों के आधार पर 'अहिंसक-समाज' की परिकल्पना प्रस्तत की। व्यक्तिगत स्तर पर अहिंसा की चर्चा अनेकशः मुखर हुई लेकिन गांधी की विशेषता यह है कि उन्होंने अहिंसा के सामाजिक पक्ष पर अधिक बल दिया। अहिंसक समाज का निर्माण आवश्यक है इसे कसौटी पूर्वक व्यापक आयाम दिया। आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसक-समाज की परिकल्पना आध्यात्मिक-सामाजिक मूल्यों के आधार पर की। भले ही उनका सीधा संबंध अध्यात्म जगत् से जुड़ हुआ था पर उनका अहिंसक-समाज संबंधी विचार किसी भी समाज-शास्त्री से कम नहीं है। अपितु तटस्थ भाव से उन्होंने जो अहिंसक समाज की मीमांसा की वह महत्त्वपूर्ण है। धार्मिक ग्रंथों में व्रती समाज की जो रूपरेखा सूत्र रूप में निबद्ध है उसे आधुनिक परिवेश में वैज्ञानिक दृष्टि से प्रस्तुत करने का दुरूह कार्य किया है। तथ्यतः दोनों ही महापुरुषों की ‘अहिंसक-समाज' रचना सोच में मौलिकता. समानता और वैशिष्ट्य का समावेश है। अहिंसा का संबंध किसी व्यक्ति विशेष अथवा सम्प्रदाय विशेष से न होकर प्राणी मात्र से है। गांधी ने इसका प्रयोग संगठित रूप में किया है। अहिंसा के संगठित प्रयोग की प्रथम इकाई है समाज। सामाजिक परिवर्तन का यक्ष प्रश्न उनके सामने था क्योंकि बड़े पैमाने पर समाज में परिवर्तन हुआ है, इतिहास के आलोक में ऐसा सिद्ध कर पाना कठिन है। पर उन्होंने इस सच्चाई को समझा और कहा-अब तक समाज में परिवर्तन नहीं हो पाया इसका अर्थ इतना ही है कि व्यापक अहिंसा का प्रयोग आज तक नहीं किया गया। हम लोगों के हृदय में इस झूठी मान्यता ने घर कर लिया है कि अहिंसा व्यक्तिगत रूप से ही विकसित की जा सकती है और वह व्यक्ति तक ही मर्यादित है। दरअसल बात ऐसी है नहीं। अहिंसा सामाजिक धर्म है, सामाजिक धर्म के तौर पर उसे विकसित किया जा सकता है, यह अहिंसक समाज : एक प्रारूप / 221
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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