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________________ मूल मंत्र है-संयम। भगवान महावीर ने कहा-अहिंसक वह है जो हाथों का संयम करे, पैरों का संयम करे, वाणी का संयम करे और इन्द्रियों का संयम करें। . अहिंसक की दृष्टि अन्तर्मुखी हो। अपने इस अन्तर्मुखी स्वभाव के कारण अहिंसक स्व पर हित संरक्षण के प्रति जागरूक रहेगा। अहिंसक का जो स्परूप मनीषी द्वय ने प्रस्तुत किया है वह एक आदर्श व्यक्तित्व का परिचायक है। साथ ही भारतीय संस्कृति के 'ऋषि-पुरुष' की संकल्पना को आकार देने वाला प्रकल्प भी है। अहिंसा प्रतिष्ठाधार : शिक्षा बालक के भीतर छिपी अनन्त संभावनाओं को उकेरने और सही आकार देने में शिक्षा की अहम भूमिका है। शिक्षा एक ऐसी तूलिका है जिससे चाहे जैसे आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण किया जा सकता है। शिक्षा एक ऐसी चाबी है जिसके द्वारा आन्तरिक क्षमताओं पर लगे ताले खुल जाते हैं। शिक्षा के द्वारा उन गुणों का बीज वपन किया जा सकता है जिसकी निष्पत्ति व्यक्ति में देखना चाहते हैं। शिक्षा का स्तर, इसका प्रयोगात्मक स्वरूप व्यक्तित्व निर्माण में योगभूत बनता है। व्यक्ति में अहिंसा की प्रतिष्ठा का प्रश्न शिक्षा से ही संभव बनता है। शिक्षा बालक के भीतर अहिंसक चेतना को पैदा करने में समर्थ है। शिक्षा के संदर्भ में अहिंसक मूल्यों के समाकलन की अपेक्षा है। महात्मा गांधी, आचार्य महाप्रज्ञ के शिक्षा विषयक विचार नैतिक मूल्यों एवं अहिंसक चेतना जगाने में समर्थ हैं। उनमें मौलिकता, समाधायकता, समानता और विशिष्टता का अनुपम संगम है। शिक्षा में अहिंसा समावेश की संकल्पना गांधी की निराली थी। उनके अभिमत में- अहिंसा प्रचंड शस्त्र है। उसमें परम पुरुषार्थ है। वह भीरू से दूर भागती है। वह वीर पुरुष की शोभा है। उसका सर्वस्व है। यह शष्क. नीरस. जड पदार्थ नहीं है। यह चेतनामय है। यह आत्मा का विशेषगण है। इसलिए शिक्षा में अहिंसा की दृष्टि है, अहिंसा रूपी प्रेम सूर्य है, वैर-भाव घोर अन्धकार है। यदि सूर्य टोकरे के नीचे छिपाया जा सके तो शिक्षा में रही हुई अहिंसा-दृष्टि भी छिपायी जा सकती है। शिक्षा में समाई अहिंसा की सोच गांधी की सूक्ष्म थी। उन्होंने यह आशा प्रकट की थी कि शिक्षा के द्वारा बालक की अहिंसक चेतना को अधिक सक्रिय, तेजस्वी बनाया जाये जिससे अहिंसक व्यक्तित्व निर्माण का सपना साकार बन सके। चालू शिक्षा पद्धति की अपूर्णता, अक्षमता को देखकर गांधी का हृदय बोल उठा-सारी शिक्षापद्धति ही ऐसी खराब है कि वह मनुष्य को पूरी शिक्षा समाप्त करने के बाद भी स्थिर मन और स्थिर विचार वाला नहीं बनाती। वह जड़मूल से सड़ी हुई है, उसे बिल्कुल नये सिरे से निर्माण करने की जरूरत है। यह मंतव्य शिक्षा संबंधी अंतर पीड़ा के साथ छिछली निष्पत्ति को द्योतित करता है। उन्होंने पाया कि चालू शिक्षा पद्धति अनेक कमजोरियों की शिकार है इससे वांछित परिणाम पाना असंभव है। शिक्षा के विषय में गांधी के विचार बड़े उदात्त थे। शिक्षा मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक विकास साधन की पद्धति है। वह अगर सही है तो शिक्षा के द्वारा मनुष्य सही प्रकार से विकास कर सकता है।" आचार्य महाप्रज्ञ के विचार गांधी के संवादी कहे जा सकते हैं। उनका कहना कि एक तरफ तो अहिंसक समाज रचना की बात कर रहे हैं, दूसरी ओर हमारी शिक्षा केवल बौद्धिक व्यक्ति पैदा कर रही है। भावना की शिक्षा के बिना बौद्धिक शिक्षा व्यर्थ है। 202 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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