SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आनंदमय जीवन का अपरिहार्य अंग बनती है। अहिंसक व्यक्ति की सफलता की शर्तों का जिक्र गांधी ने किया है। जो लोग पक्के अहिंसक हैं, वे इस बात की परवाह नहीं करेंगे कि उनके विरोधी प्रबल सैनिक शक्ति वाले है या कमजोर । मैं इस बात का हृदय से समर्थन करता हूं कि सच्चा अहिंसा-परायण वही है जो प्रहार करने की क्षमता रखते हुए भी अहिंसात्मक बना रहता हो।' अहिंसावादी सदा मिट जाने को प्रस्तुत रहेगा। इन शर्तों के बिना सफलता की कामना अपूर्ण रह जाती है। गांधी ने जहाँ एक अहिंसक के स्वरूप-गुण-शतों का जिक्र किया वहाँ अपने देशवासियों की तथा अपने अहिंसक जीवन की अपूर्णता को भी स्वीकार किया-'सच्चे अहिंसक हिन्दुस्तान को किसी भी विदेशी शक्ति से कोई डर न होगा और न उसे अपनी सुरक्षा के लिए ब्रिटिश बेड़ों और हवाई फौजों का मुंह ताकना होगा। मैं जानता हूं अभी हमारे अन्दर बहादुरों की अहिंसा नहीं आ पाई है। उन्होंने अहिंसक शक्ति को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मिसाल बताया। इसकी सफलता पर संदेह की रेखा भी उनके दिमाग में स्थान न बना पाई। गांधी के चिंतन से कुछ हटकर आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसक की सफलता की शर्तों का उल्लेख किया। पहली शर्त है कि उसका मानसिक संतुलन, अपने आवेगआवेश पर नियंत्रण हो। क्रोध, मान, माया-लोभ, चुगली, निंदा, आरोपण, घृणा, तिरस्कार, कलह, पक्ष का आग्रह और भय ये आवेग हैं, जो असंतुलित स्थिति में तन-मन को रुग्ण बना देते हैं। अहिंसक को धीर-गम्भीर और शान्त होकर वेगात्मक वृत्तियों पर विजय पानी चाहिए। आवेग मुक्ति, वासनामुक्ति और व्यसन-मुक्ति होने से रोग-मुक्ति स्वयं हो जाती है। आवेग विजय का अर्थ है-स्वास्थ्य, स्वस्थता, आत्म-स्थिति। आवेगों के नियन्त्रण से उदात्त वृत्तियां फलती हैं-क्षमा या उपशम, नम्रता या मृदुता, ऋजुता, अनासक्त भाव या सन्तोष, पर-गुण-ग्राहकता, स्व-श्लाघा-वर्जन, स्व-दोष-दर्शन, प्रेम या मैत्री, शान्ति, सत्य का आग्रह, अभय। एक सच्चा अहिंसक अपने नियंत्रण की चाबी अपने पास रखता है, जो उसकी सफलता का राज है। अहिंसक के मौलिक स्वरूप की ओर इंगित करते हुए महाप्रज्ञ ने सफलता के सूत्र प्रस्तुत कियें• अहिंसक को क्रूर नहीं होना चाहिए। क्रोध क्रूरता लाता है प्रेम का नाश करता है। • अहिंसक नम्र होगा, उदण्ड नहीं। लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु, निंदा-प्रशंसा, मान अपमान में जो समवृत्ति होता है, वही अहिंसक है। अहिंसक को काय-ऋजु, भाषा-ऋजु, भाव-ऋजु होना चाहिए। . पदार्थों के लिए या उनके व्यवहार में आसक्ति न हो। आसक्ति या असंतोष हिंसा है। परोक्ष में बुराई करना चुगली है और सामने बुराई करना निन्दा है। अहिंसक इन से उपरत हो।38 सहकारी बिन्दु : अहिंसक विश्वासपात्र होना चाहिए। वह चापलूस नहीं होता परन्तु सद्भावना के द्वारा एक अभिमानी के दिल को भी जीत लेता है। एक अहिंसक कभी झूठी प्रशंसा नहीं करता। अहिंसक किसी के साथ अनबन न करे। वह स्वयं अनबन के रास्ते पर न जाए। दूसरा कोई जाए तो उसकी जिम्मेदारी अहिंसक नहीं ले सकता। . अहिंसक किसी के प्रति अन्याय न करे। अन्याय का दूसरा अर्थ है-असंयम। अहिंसा का अहिंसा की मूल इकाई : व्यक्ति । 201
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy