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________________ के प्रयोग में सारे जगत को दिलचस्पी है और उसका महत्त्व युगों तक कायम रहेगा। इसका कारण यह है कि उन्होंने समूह को लेकर या राष्ट्रीय पैमाने पर उसका प्रयोग करने की कोशिश की है।' गांधी के अहिंसक प्रयोग की सशक्त कड़ी है-अहिंसक आंदोलन। असहयोग, कानूनों का सविनय भंग और सत्याग्रह-इन उपक्रमों के जरिये गांधी ने स्वराज्य का रास्ता तय किया। 'शांतिपर्ण बदलाव के एक साधन के रूप में अहिंसात्मक विधि से दबाव डालने की ताकत में उनका विश्वास आज भी विश्व भर में उतना ही न्याय संगत है जितना महात्मा गांधी के काल में भारत में था।' यू. थांट के इस कथन में गांधी के प्रयोगों की प्रासंगिकता उजागर हुई है। गांधी ने हृदय परिवर्तन की भूमिका पर अहिंसा की प्रतिष्ठा को स्वीकार किया। आचार्य महाप्रज्ञ ने इसे प्रयोग की कसौटी पर साबित किया कि अहिंसक प्रयोगों के द्वारा व्यक्ति परिवर्तन का दुरूह कार्य संपादित किया जा सकता है। अहिंसा प्रशिक्षण की सार्वभौम प्रक्रिया के द्वारा महाप्रज्ञ ने अहिंसक प्रयोगों को प्रतिष्ठित किया। वैयक्तिक चेतना के परिष्कार एवं पवित्रता को सामुदायिक चेतना का आधार बतलाते हुए प्रयोग की व्यापकता पर बल दिया। अहिंसा की गतिशील प्रक्रिया को 'अणुव्रत-आंदोलन' के जरिये प्रस्तुत कर व्यक्ति, समाज, राष्ट्रव्यापी समस्याओं का निदान अहिंसक रीति में सुझाया। जिसका महत्त्वपूर्ण उद्घोष है- 'सुधरे व्यक्ति-समाज व्यक्ति से, राष्ट्र स्वयं सुधरेगा।' इस सुधार प्रक्रिया का आधरभूत सूत्र है-प्रशिक्षण। ___ अहिंसक चेतना के निर्माण में भाव परिष्कार हेतु आचार्य महाप्रज्ञ ने मस्तिष्कीय प्रशिक्षण अथवा हृदय परिवर्तन की प्रविधियों पर विशेष रूप से प्रकाश डाला। प्रशिक्षण के बहुआयामी स्वरूप को प्रस्तुत किया निषेधात्मक भाव से मुक्ति पाने के लिए जरूरी है संवेग नियंत्रण का प्रशिक्षण। . अमीरी की समस्या से मुक्ति पाने के लिए जरूरी है संयम प्रधान जीवन शैली का प्रशिक्षण। . गरीबी की समस्या से मुक्ति पाने के लिए जरूरी है संविभाग की चेतना का प्रशिक्षण। • संविभाग की चेतना को जगाने के लिए संवेग नियंत्रण और संयम की चेतना के जागरण का प्रशिक्षण जरूरी है। अहिंसा के प्रायोगिक स्वरूप को अहिंसा समवाय, अहिंसा सार्वभौम, अहिंसा प्रशिक्षण, प्रेक्षाध्यान, यौगिक प्रयोगों के रूप में प्रतिष्ठित कर आचार्य महाप्रज्ञ ने परिवर्तन की महत्त्वपूर्ण प्रविधि का सूत्रपात किया। तथ्यों के आलोक में महात्मा गांधी एवं आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसा को प्रयोगभूमि पर प्रयुक्तकर उसकी व्यापकता को उजागर किया है। चतुर्थ अध्याय प्रयोग प्रविधि की महत्त्वपूर्ण कड़ी है। जिसमें अहिंसा विकास की नूतन संभावनाएं उजागर हुई हैं। अहिंसा संबंधी विचारों में 'भेद, अभेद एवं समन्वय' का विमर्श गैंचम अध्याय में किया गया है। महात्मा गांधी एवं आचार्य महाप्रज्ञ के विचारों के तुलनात्मक अनुशीलन पर इसका प्रारूप तैयार किया गया है। इस खण्ड़ की संपूर्ण रूपरेखा अपने आप में मौलिक है। जिसका इस लेखन कार्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। गांधी और महाप्रज्ञ दोनों भिन्न धाराओं के होने के बावजूद उनके वैचारिक प्रवाह में अद्भुत साम्यता का निदर्शन है। मानों दोनों एक दूसरे से प्रभावित हों। यद्यपि साक्षात् रूप से गांधी और महाप्रज्ञ का मिलन नहीं हुआ पर दोनों ने एक दूसरे के साहित्य पठन से संपर्क साधा। ऐसा साहित्य मंथन के आधार पर पुष्ट होता है। (xviii)
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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