SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का डर, जाने-अनजाने अनेक डर सताने लग जाते हैं, तब अहिंसा से डिगने का रास्ता बनता है। पर निश्चित लक्ष्य वाला व्यक्ति नहीं डिगता। दृढ़ निश्चयी पराक्रमी शूर-वीर आदमी जीवन में एक बार मरता है, कायर आदमी हजारों बार मरता है। उसे चिन्ता और भय सताते रहते हैं। भय भीतर रहता है और वह सुख को काटता रहता है। हमारे सुख का सबसे बड़ा शत्रु है भय, वह सुख को चिरयुवा बनने नहीं देता। जिसे अहिंसा को चिरयुवा बनाये रखना है उसके लिए अभय बनना जरूरी है। महाप्रज्ञ ने बतलाया कि अभय का विकास अहिंसा और मैत्री के विकास के बिना संभव नहीं है। परिवार और समाज में, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में सर्वत्र अहिंसा का विकास हो, मैत्री भाव का विकास हो तो आदमी अभय हो सकता है। अभय और अहिंसा का परस्पर घनिष्ट संबंध है। दोनों महापुरुषों ने समान रूप से इसे स्वीकारा है। हिंसा की शक्ति भय और आंतक पैदा करने वाली, डराने वाली, संताप देने वाली है। अहिंसा की शक्ति अभय की चेतना को जागृत करने वाली, मैत्री, सौहार्द, आत्मीयता, अपनापन पैदा करने वाली है। अहिंसा की शर्ते व्यक्ति के जीवन में अहिंसा अवतरण के मौलिक कारकों की चर्चा महत्त्वपूर्ण है। त्याग परक अहिंसा का अपना मूल्य है। गांधी का इस विषय में दृष्टिकोण रहा है कि हमें अहिंसा के क्षेत्र में नित नई शोध करनी हो, और मानव जाति पर शासन करने वाले इस सनातन और महान् नियम की नई. नई शक्तियों का समय.समय पर संसार को परिचय कराना हो, तो इसके लिए यम.नियमों का पालन आवश्यक है। चूंकि यम नियमों का पालन आत्म.शुद्धि का साधन है। आत्म शुद्धि के बिना अहिंसा की साधना व्यक्ति के जीवन में उतर नहीं पाती अतः आत्म शुद्धि जरूरी है। आत्म शुद्धि के बिना जीवमात्र के साथ ऐक्य सध ही नहीं सकता। आत्म.शुद्धि के बिना अहिंसा धर्म का पालन सर्वथा असंभव है। नम्रता और सत्य-परायणता के बिना अहिंसा का पालन होना असंभव है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि 'अहिंसा की सिद्धि के लिए यह जरूरी है कि कुमार्ग से जो कुछ प्राप्त किया गया हो उसका त्याग कर दिया जाये।' साधन-शुद्धि के महत्त्व को गौण नहीं किया जाये। अहिंसा का पालन करने वाले व्यक्ति के लिए शर्त है कि परमेश्वर में सजीव श्रद्धा होना। गांधी के शब्दों में 'वीरों की अहिंसा साधना की सबसे पहली शर्त यह है कि हम अपने दिल में राम के जीते-जागते अस्तित्व का अनुभव करें। इससे व्यक्ति के भीतर शक्ति का उदय होता है। अहिंसा की शर्तों के अनुपालन से नई चेतना का संचार होता है और व्यक्ति अपने मिशन में सफल होता है। अहिंसा अवतरण और विकास के संबंध में आचार्य महाप्रज्ञ का चिंतन रहा कि अहिंसा का प्रारंभ किसी को मत मारो, मत सताओ से शुरू करो परंतु इसकी प्रतिष्ठा हेतु कतिपय महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं की साधना जरूरी है। मन की पवित्रता, भावना की पवित्रता, कलह, कदाग्रह, निंदा, चुगली, परपरिवाद आदि मानसिक दोषों का शमन और प्रक्षालन हो, निर्मलता का प्रतिशत बढ़े साथ ही चित्त में मैत्री, प्रमोद, करुणा, औदासीन्य का विकास हो ताकि अहिंसा की चेतना स्वतः स्फूर्त बन जाये। उन्होंने कहा-जीवन-प्रणाली में परिवर्तन अहिंसा के विकास की मुख्य शर्त है। आज के व्यक्ति की जीवन प्रणाली शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं है। आज न केवल शारीरिक स्वास्थ्य गड़बड़ा रहा है, मानसिक स्वास्थ्य भी गड़बड़ा रहा है। और जब मन स्वस्थ नहीं होता तो हिंसा बढ़ती है, अपराध, हत्याएं और आत्म-हत्याएं बढ़ती है। जीवन प्रणाली को बदलना 196 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy