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________________ नाम में इससे भी कई गुना महानतर थे। उनकी महानता को इजहार करने की आकाँक्षा से लोगों व संस्थाओं ने उनको अनेक उपाधियों, सम्मान-संबोधनों से नवाजा है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ को उपहृत अलंकरण व सम्मान की संक्षिप्त झलक सन् द्वारा 1. महाप्रज्ञ अलंकरण 1978 आचार्य तुलसी 2. जैन योग के पुनरुद्धारक 1986 आचार्य तुलसी 3. प्राकृत के परम्परागत पंडित 1989 U.G.C. (Government of India, Delhi) 4. Man of the year 1998 American Biographical Institute 5. D. Lit 1999 Netherland Inter-cultural open university 6. Diwali Ben progressive 2003 Diwali Ben Mohan lal Mehta Religious Award charitable Trust, Mumbai 7. लोक महर्षि 2003 नई मुम्बई नगरपालिका 8. Ambasdor for peace 2003 Inter-religious and International Federation for world peace, London 9. इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय एकता 2003 Indira Gandhi NationalAward पुरस्कार Committee, New Delhi 10. महात्मा 2004 चैतन्य कश्यप फाउंडेशन 11. धर्म चक्रवर्ती 2004 कर्नाटक के विभिन्न धर्मगुरू 12. Communal HarmonyAward 2005 Ministry for HomeAffairs, Govt.of India, New Delhi 13. Mother TeresaAward 2005 Inter-faith Harmony Foundation of India, New Delhi 14. World peace Messenger 2008 कर्नाटक के विभिन्न 15. AhinsaAward 2008 Institute of Jainology, Londons" समर्पित सम्मान-संबोधनों, उपाधियों के परिप्रेक्ष्य में यह बहुत स्पष्ट हो जाता है कि आचार्य महाप्रज्ञ के पारदर्शी व्यक्तित्व और कालजयी कर्तृत्व की अमिट छाप विश्व व्यापी बनीं। विभिन्न सम्मान, अलंकरण आत्म नचिकेता महायोगी के लिए कोई महत्व नहीं रखते पर उनका सम्मान भारतीय संस्कृति की गौरवशाली अध्यात्म परंपरा का है जिसने समाज और राष्ट्र को एक बार फिर से गौरवान्वित बनाया है। सफलता के नियामक, जीवन को आलोकित करने वाले आचार्य महाप्रज्ञ के चयनित सूत्र थे. मैं ऐसा कोई काम नहीं करूँगा, जो मेरे विद्यागुरु को अप्रिय लगे। . मैं ऐसा कोई काम नहीं करूँगा, जिससे मेरे विद्यागुरु को यह सोचना पड़े की मैंने जिस व्यक्ति को तैयार किया, वह मेरी धारणा के अनुरूप नहीं बन सका। . मैं किसी भी व्यक्ति का अनिष्ट नहीं करूँगा। इन सफलता सूत्रों के साथ इस तथ्य को प्रकट किया कि 'सरलता मुझे प्रिय थी। कपट, प्रपंच, छलना और प्रवंचना से मुझे बहुत घृणा थी। मैं सबके प्रति निश्छल व्यवहार करना पसंद करता था। 20 जीवन के रहस्य : बनाम सफलता सूत्र / 179
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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