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________________ जीवन के रहस्य : बनाम सफलता सूत्र 'अप्प दीवो भव' को आत्मसात् कर जन-जन की चेतना को आलोकित करने वाले विरल होते हैं। महाप्रज्ञ का नाम उस श्रृंखला में स्वर्णांकित है। पृष्ठभूमि में बोलता है महाप्रज्ञ के फौलादी संकल्प का बल। इसके सहारे उन्होंने व्यक्तित्व निर्माण की अभिनव ऊँचाइयों को छुआ। उसका राज महाप्रज्ञ के शब्दों में-मैं बचपन में ही दीक्षित हो गया। इसे मैं एक नियति मानता हूँ। दीक्षा ग्रहण करने के बाद मेरे मन में सदा एक जिज्ञासा रही . जो भी अज्ञात है, उसे मैं ज्ञात करना चाहता हूँ। . जो रहस्यपूर्ण है, उसको अनावृत करना चाहता हूँ। . जो नहीं हूँ, वह होना चाहता हूँ। इन तीनो संकल्पों के आधार पर मैंने मुनि का जीवन जीया है। इसकी व्यापक भूमिका आलेख में बहुत पहले प्रकट हुई, उन्होंने लिखा . में मुनि हूँ। आचार्य श्री तुलसी का वरदहस्त मुझे प्राप्त है। मेरा मुनि-धर्म जड़ क्रिया - कांड से अनस्यत नहीं है। मेरी आस्था उस मनित्व में है. जो बझी हई ज्योति ना हो। मेरी आस्था उस मुनित्व में है, जहाँ अनन्त का सागर हिलोरें भर रहा हो। मेरी आस्था उस मुनित्व में है, जहां शक्ति का स्त्रोत सतत प्रवाही हो। मैं एक परंपरा का अनुगमन करता हूँ, किंतु उसके गतिशील तत्वों को स्थितिशील नहीं मानता। मैं शास्त्रों से लाभान्वित होता है. किन्त उनका भार ढाने में विश्वास नहीं करता। मुझे जो दृष्टि प्राप्त हुई है, उसमें अतीत और वर्तमान का वियोग नहीं है, योग है। मुझे जो चेतना प्राप्त हुई है, वह तन-मन के भेद से प्रतिबद्ध नहीं है, मुक्त है। मुझे जो साधना मिली है, वह सत्य की पूजा नहीं करती, शल्य चिकित्सा करती है। सत्य की निरंकुश जिज्ञासा ही मेरा जीवन-धर्म है वही मेरा मुनित्व है। मैं उसे चादर की भाँति ओढ़े हुए नहीं हूँ। वह बीज की भांति मेरे अंतस्तल से अंकुरित हो रहा है। एक दिन भारतीय लोग प्रत्यक्षानुभूति की दिशा में गतिशील थे। अब वह वेग अवरूद्ध हो गया है। आज का भारतीय मानस परोक्षानुभूति से प्रताड़ित है। वह बाहर से अर्थ का ऋण ही नहीं ले रहा है, चिंतन का ऋण भी ले रहा है। उसकी शक्तिहीनता का यह स्वतः स्फूर्त साक्ष्य है। मेरी आदिम, मध्यम और अंतिम आकाँक्षा यही है कि मैं आज के भारत को परोक्षनुभूति की प्रताड़ना से बचाने और प्रत्यक्षानुभूति की और ले जाने में अपना योग दूं।' आचार्य महाप्रज्ञ दुनिया की दृष्टि 178 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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