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अमूल्य बोध पाठ
महाप्रज्ञ का जीवन उनके बाह्य व्यक्तित्व से कई गुणा महान् रहा है, क्योंकि उनका आलौकिक आचरण विचारों से संगत था। उनकी जीवन शैली में अध्यात्म और तर्क का संगम हुआ। ऐसे महामानव का जन्म असाधारण घटना के साथ शुभ नक्षत्रावेष्टित 14 जून 1920 को, वि. सं. 1966 आषाढ़पद कृष्णा त्रयोदशी के दिन मरुप्रदेश राजस्थान के टमकोर कस्बे में हुआ। एक प्रतिष्ठित साधारण-से चोरडिया परिवार में असाधारण आत्मा का अवतरण हुआ। अवतरण पर ये पंक्तियाँ मुखर बनीं
‘हजारों साल बुलबुल अपनी बेनुरी पे रोती है। - बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।।'
· शिशु का साभिप्राय नाम 'नथमल' रखा गया। बालक की भावि भवितव्यता-विराट्ता का संदेश जन्म प्रकिया के साथ उद्घाटित हुआ। आम शिशु चार दीवारी के बंद आकाश में पैदा होता है वहाँ आचार्य महाप्रज्ञ की शिशु आत्मा को अनन्त आकाश क्षितिज के खुले वितान (चौक) में जन्म लेने का सौभाग्य मिला। मानों यह घटना बालक के भावी अकूत विकास एवं विराट्ता का शकुन थी। विज्ञान सम्मत जैन मान्यतानुसार नवजात शिशु में व्यक्तित्व निर्मिति के कारक विद्यमान रहते हैं। जन्मजात शिशु में भले ही अदृश्य पर, वीर्य रूप में अनेक शक्तियां, संस्कार, कर्म स्पंदन विद्यमान रहते हैं, जिन्हें अनन्त-अनन्त की संख्या में ले जाया जा सकता है। व्यवहारिक जगत में अधिकांशतया ये ‘योजकस्तत्र दुर्लभ' के योग में प्रसुप्त ही रह जाती हैं पर, महाप्रज्ञ इसके अपवाद बनें। प्रबुद्ध शैशव बालक नथमल का शैशव प्रबुद्ध जागृत ज्ञान चेतनामय था। इसका अंदाजा स्वयं महाप्रज्ञ के कथन से किया जा सकता है। 'मैं ढाई मास का था, पिता इस संसार से चल बसे। मेरी अन्तरात्मा कहती है-मैंने उन्हें देखा। उस समय का चित्र मेरी आँखों में अंकित है।'48 क्या इतना नन्हा शिशु स्पष्ट रूप से कुछ जान सकता है? जिज्ञासा स्वाभाविक है। पर इसे काल्पनिक अथवा असंभव भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि 'कल्प सूत्र' में भगवान् महावीर के संबंध में स्पष्ट उल्लेख है। जन्म के साथ तीन ज्ञान सहित वे इस धरा पर अवतरित हुए। सुमेरू पर्वत पर एक सौ आठ कलशों से स्नान क्रिया के संबंध में देवेंद्रों द्वारा संदेह करने पर भ. महावीर के शिशु देह ने अपने पैर के अंगूष्ठ मात्र से सुमेरू पर्वत को हिला दिया। प्रत्यक्षतया यह शिशु की अनन्त शक्ति का उदाहरण भले ही भाषित हो पर इसकी पृष्ठभूमि में ज्ञान चेतना का स्पष्ट निदर्शन है।
अमूल्य बोध पाठ / 155