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________________ गांधी ने स्वीकारा, मैंने रस्किन की 'अनटू दिस लास्ट' से अतीव प्रेरणा प्राप्त की। सर्वोदय और अन्त्योदय की अवधारणाएं इसी विचार की निष्पत्ति है। रस्किन के विचारों की पुष्टि में उन्होंने कहा था-जब कभी भ्रम में पड़ जाएं और अहं व्यक्ति पर हावी हो जाए तो निष्पक्ष चिंतन से परखे, किसी ऐसे सबसे निर्धन और कमजोर व्यक्ति के चेहरे को याद कीजिए जिसे आपने शायद पहले देखा हो और फिर स्वयं से पूछिए कि आप जो कदम उठाने जा रहे हैं, क्या उससे उसका कुछ भला हो सकता है? क्या वह इससे कुछ प्राप्त कर सकेगा। क्या इससे वह स्वयं के अपने जीवन और भाग्य का नियंता बन सकेगा? दूसरे अर्थों में क्या इससे भूखों को और अध्यात्म शून्य लाखों लोगों को स्वराज मिल सकेगा। इस चिंतन की गहराई में पायेंगे कि भ्रम और अहं विलीन हो रहे हैं। इस प्रकार यह पुस्तक उनके भीतर चिंतन का नया प्रवाह पैदा करने में सफल रही। 'सर्वोदय' इस रचना की प्रतिछाया है जिसमें गांधी के विचारों का आलोक खोजा जा सकता है। यह सचाई है कि पुस्तक से वे इतने प्रभावित हुए कि नेटाल की राजधानी छोड़कर जूलूलैंड के जंगल में जा बसे। ऐच्छिक गरीबी को गले लगाया और सही अर्थों में पसीने की कमाई खाने का प्रयत्न करने लगे। साहित्य लगाव के संबंध में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि पुस्तक के विचारों से सहमत होते तो उन्हें आत्मसात् कर लेते और तदनुसार आचरण भी करते, असहमत होते तो उससे हमेशा के लिए अपना मन हटा लेते थे। परिस्थितियाँ बनाम प्रेरणा गुणग्राही व्यक्तित्व के पर्याय गांधी ने अपने जीवन में अनेक चेतन-अचेतन अभिप्रेरकों से प्रेरणाएं संजोयी। यह मात्र संकल्पना नहीं सच्चाई है। इसका साक्षी है उनका विराट् साहित्य, जिसमें उत्सूत्र रूप में यत्र-तत्र प्रेरकों की चर्चा की गई है। स्वदेश एवं विदेश में घटने वाली कुछ तात्कालिक परिस्थितियां गांधी ने देखी जो प्रत्यक्ष प्रेरणा न होते हुए भी अन्तर चेतना को झकझोरने वाली थीं। उन परिस्थितियों से प्रभावित हो उनके भीतर जो क्रांति के स्फुलिंग उठे, संकल्प जगा वही उनका कर्मक्षेत्र बनता गया। अनके प्रथायें,-घटनाएं, गांधी के आंदोलन का निमित्त बनीं अतः प्रस्तुत संदर्भ में उन्हें प्रेरणा स्रोत के रूप में देखा जा सकता है। सेठ अब्दुल्ला के निमंत्रण पर गांधी एक साल के लिए दक्षिण अफ्रीका डरबन मई, 1893 में पहुँचे। वहाँ चालीस हजार पौंड के दीवानी दावे का काम था। डरबन अदालत में यूरोपियन मजिस्ट्रेट द्वारा गांधी को पगडी उतारने का हक्म रंग-भेद का नमूना मात्र था। लेकिन डरबन से प्रिटोरिया जाते समय जो घटना घटी-गाड़ी मैरित्सबर्ग पहुंचने पर उन्हें पहले दर्जे का डिब्बा छोड़कर आखिरी दर्जे के डिब्बे में जाने का हक्म मिला। इनकार करने पर धक्का मारकर बड़ी बेहदगी से नीचे उतार दिया गया। ठंड से ठिठरती रात उन्होंने मैरित्सबर्ग स्टेशन के अंधरे वेटिंग रूम में बैठे घटना पर चिंतन में बिताई। दक्षिण अफ्रिका में भारतीयों को जिन अपमान जनक परिस्थितियों में रहना पड़ रहा था, गांधी उससे वाकिफ नहीं थे। सहने की मानसिकता से आगे जाने का निश्चय किया। ___चार्ल्सटाउन से स्टैंडरटन घोड़े की सिकरम से जाना होता था। गांधी को सिकरम के अंदर गौरे यात्रियों के साथ न बैठने देने पर प्रतिकार किया तो सिकरम कंपनी का गौरा नायक आगबबूला हो उन पर हाथ उठा दिया। उन्हें बुरी तरह पिटते देख कुछ गौरे यात्रियों ने बीच-बचाव किया। गांधी 150 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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