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________________ ।' सरदार पटेल के इस विनोद पर गांधी ने मुस्कुराते हुए कहा : 'जरूर मेरी माँ ने मुझे यही सिखाया था। वह मुझे हवेली और शिवमंदिर - दोनों जगह जाने को कहती थी, और जब हमारा विवाह हुआ तो हमको पूजा के लिए सब हिन्दू मंदिरों में ही नहीं, बल्कि फकीर के तकिये पर भी ले जाया गया था । ऐसे समन्वयात्मक संस्कार उन्हें माता से मिले थे । पुतलीबा का जीवन व्रतमय तपमय था । माता के आदर्श जीवन से मिली प्रेरणा में उपवास उनके लिए संपूर्ण जीवन के दुःख दर्द मिटाने का सुदर्शन चक्र साबित हुआ। जो उपवास उन्होंने संयम, आरोग्य की दृष्टि से प्रारंभ किये थे वे कालांतर में आत्मशुद्धि, न्याय प्राप्ति एवं हृदय परिवर्तन के अमोघ अस्त्र सिद्ध हुए। जीवन के अनेक नाजुक क्षणों में उपवास का सहारा लिया और सफलता प्राप्त की। गांधी जीवन के उपवास की एक संक्षिप्त झाँकी का उल्लेख किया गया है।* उपवासों में से यरवदा जेल में किया गया 'आमरण अनशन उपवास' सर्वाधिक प्रसिद्ध है जिसने हिन्दू समाज के स्थायी विघटन को रोका। उपवासों में एक ओर गांधी का आत्म-विश्वास आध्यात्मिक शक्ति तथा उनके विपक्षी के हृदय को प्रभावित या परिवर्तित करने की क्षमता का प्रदर्शन हुआ तो दूसरी ओर एक सर्वमान्य राजनेता के रूप में जनता पर उनका संतुलित प्रभाव पड़ा। भारतीय संदर्भ वस्तुतः दोनों ही बातें सत्य है । गांधी ने अपने जीवन में लगभग 166 दिन उपवास किया ।" उनके उपवासव्रत को कोई व्यक्ति किसी भी रूप में ग्रहण करें, पर यह सच्चाई है कि गांधी के उपवास अहिंसक शक्ति के प्रतीक एवं पाषाण हृदय परिवर्तन के सबूत हैं । तथ्यतः माता पुतलीबा का तपःपूत जीवन, दृढ़ आस्था और प्रचुर प्यार गांधी के हृदय-पटल पर सदा अंकित रहा। भविष्य के अपरिग्रही, मौन व्रत और उपवासों में संलग्न, घृणा का प्यार से जवाब देने वाले लुंगीधारी महात्मा के निर्माण में सबसे अधिक प्रभाव उनकी माता पुतलीबाई ही था। पारिवारिक परिवेश अहिंसा गांधी का जीवन व्रत बनीं। यह सूर्य के प्रकाश की भांति उनके जीवन का उजला पक्ष है। उन्होंने अहिंसा को आराधा-साधा और विराट् फल हस्तगत कियें । प्रश्न है गांधी ने अहिंसा की ऐसी तालीम कहां से पाई ? इसका काल्पनिक उत्तर बेइमानी होगा। स्वयं जो दलील दी है वह सर्वथा प्रामाणिक है। उन्होंने कहा-मैंने तो खुद अपनी स्फूर्ति से अहिंसा को अपनाया था, मुझे बचपन में घर के वातावरण में ही इसकी तालीम मिली थी। इसमें हिंसा की अपेक्षा अधिक शक्ति समायी हुई है यह मैं दक्षिणअफ्रीका में समझ सका । वहां मुझे सुसंगठित हिंसा और साम्प्रदायिक द्वेष का मुकाबला अहिंसा के जरिये करना पड़ा था । हिंसा की अपेक्षा अहिंसा का मार्ग श्रेष्ठ है यह दृढ़ प्रतीति लेकर मैं दक्षिण अफ्रीका से लौटा।' इस मंतव्य के आधार पर गांधी की अहिंसा स्फूर्णा का सम्यक् आकलन किया जा सकता है। पारिवारिक प्यार से बचपन में प्यार भरे मोनिया के नाम से पुकारे जाने वाले मोहनदास भविष्य के भारत निर्माता बनेंगे, अहिंसा और शांति के प्रतीक बनेंगे यह कौन जानता था ? पर अव्यक्त रूप . से पारिवारिक परिवेश में उन्हें ऐसी ही खुराक मिली जो सद्गुणयुक्त जीवन जीने की स्थायी प्रेरणा * परिशिष्ट : 2 130 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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