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स्वकथ्य
विश्व - मानव अस्तित्व संरक्षण की तलाश में है । जिसका अनुभव परमविज्ञाता ने बहुत पहले ही कर लिया। शाश्वत् समाधान की डगर पर मूल्यों की प्रतिष्ठा हुई । अहिंसा उसका मौलिक घटक है । यह त्रैकालिक सच है । इसकी साधना में स्वयं को नियोजित करने वालों का स्वर्णिम इतिहास है उसमें राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और आचार्य महाप्रज्ञ का नाम शामिल है । उभय मनीषियों ने अहिंसा को शक्ति, आलोक और समाधान के नजरिये से परखा और प्रयोगपूर्वक प्रतिष्ठित किया।
यद्यपि अहिंसा की शक्ति भारत के लिए कोई नया तत्व नहीं है । सच्चाई तो यह है कि अहिंसा का उपदेश भारत में इतनी बार दिया गया कि शेष विश्व भारत को अहिंसा और निवृत्ति का देश ही मान बैठा । मनीषीद्वय द्वारा इस सोच को नया परिवेश मिला । अहिंसा विचारात्मक गतिशील प्रक्रिया से, यथार्थ के धरातल पर समस्या समाधान की कीमियांस्वरूप प्रतिष्ठित हुई ।
बल, शस्त्र और पौद्गलिक शक्ति के सहारे पशुता का साम्राज्य स्थापित होता है और मनुष्य अपनी गुणवत्ता को भूलकर कर्तव्यच्युत हो जाता है । आधुनिक विश्व की यही समस्या है । समाधान के आलोक में मनीषियों की अहिंसा संकल्पना मौलिकता से संपृक्त है । मनुष्य का उज्ज्वलांश प्रदीप्त हो वह अहंकार, स्वार्थ, भौतिक आकांक्षा से ऊपर उठकर अपने व्यक्तित्व का विसर्जन विराट् के कल्याण में समर्पित करें। इस सत्य को अहिंसा के केनवास पर साबित करने का बीड़ा मनीषियों ने उठाया और सफलता की मिसाल कायम की । उसकी एक झलक 'अँधेरे में उजाला' में देखी जा सकती है।
महात्मा महाप्रज्ञ और महात्मा गाँधी के विराट् अहिंसा दर्शन से कतिपय तथ्यों को एकत्रित करने का मेरा विनम्र प्रयत्न मात्र है। सीमित संसाधनों में संपादित कार्य की अपनी सीमा है । अहिंसा के क्षेत्र में कार्य करने वालों के समक्ष आधुनिक संदर्भ में प्रयोग परीक्षण पूर्वक गाँधी एवं महाप्रज्ञ के दर्शन को उजागर करने में यह लेखन कार्य निमित्त बना तो श्रम की सार्थकता होगी।
विभिन्न संदर्भों में गुँफित अहिंसा दर्शन के कतिपय तथ्यों को यथार्थ के धरातल पर प्रस्तुत करने का सामर्थ्य मेरी अल्पमति में कहाँ आया? एक मात्र गुरु-कृपा का ही चमत्कार मानती हूँ । पूज्य प्रवर की पारदर्शी शक्ति ने मेरी चेतना को झंकृत किया और कार्य संपादन अवरोधों के बावजूद सुगम बनता गया ।
दिव्य विचारों के स्रष्टा पूज्यप्रवर ने सहर्ष अनुज्ञा प्रदान की और अपेक्षित संशोधनपूर्वक शोध
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