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________________ जीवन व्यापी समस्याओं के समाधान की और ध्यान केन्द्रित करते हुए महाप्रज्ञ ने दिशा दर्शन दिया-'अहिंसा हमारे दैनिक जीवन में आने वाली समस्याओं को सुलझाने का सबसे सरल और सबसे शक्तिशाली उपाय है।' प्रकटतया उन्होंने धर्म के संकुचित दायरे में सिमटी अहिंसा को व्यापक क्षेत्र में प्रतिष्ठित किया है। जो अहिंसा मात्र परलोक शुद्धि के लिए अथवा आध्यात्मिक क्षेत्र में मान्य थी उसे जीवन के व्यवहार पक्ष से जोड़कर आम जनता की अहिंसा संबंधी सोच को प्रभावित किया है। अहिंसा और शांति कलापूर्ण जीवन में शांति का प्रतिष्ठान होता है। अहिंसा और शांति दोनों में तादात्म्य संबंध है। इसके बाबत आचार्य महाप्रज्ञ के महत्त्वपूर्ण विचार है। उन्होंने बतलाया- 'मनुष्य के भावों में जब तक अहिंसा का प्रवेश नहीं होगा तब तक शांति का जन्म नहीं हो सकता। अहिंसा को पढ़ाया नहीं जाता उसे जीना पड़ता है। अहिंसा का जीवन जीने वाला ही शांति को उपलब्ध कर सकता है।' इस मंतव्य को व्यापक संदर्भ में प्रस्तुति मिली। हम मानवीय एकता में विश्वास रखते हैं क्योंकि सच्चाई तो वास्तव में एक ही है। मानव धर्म भी एक है। देश और काल की परिस्थिति से पूजाउपासना में अन्तर आ सकता है। पर धर्म के मौलिक तत्त्व, आत्मा की पवित्रता एक ही है। यदि आदमी शांति चाहता है तो इसके सिवाय और कोई विकल्प नहीं है कि सबकी भावना का आदर करे। ___मानवता एक बाजार है। उसमें हिन्दू और मुसलमान दुकानों के समान हैं। जैसे बाजार में कोई भी व्यक्ति हिन्दू की दुकान या मुसलमान की दुकान को नहीं देखता, सुलभ और सही माल को देखता है, उसी प्रकार हमें भी जातियों-संप्रदायों को नहीं देखना है अपितु अच्छे भाव को देखना है। जब भाव अच्छा होता है तभी आदमी में धर्म अवतरित होता है। तभी शांति स्थापित होती है। शांति नहीं होती है तो अर्थ-व्यवस्था भी बिगड जाती है। अनशास्ता ने प्रसंग विशेष पर यह बतलाया कि अगर विकास करना है तो शांति आवश्यक है। शांति के बिना रोटी भी नहीं मिलती। जब अशांति होती है तो ज्यादा नुकसान तो गरीब लोगों को ही होता है। इस मंतव्य के परिप्रेक्ष्य में जान सकते हैं कि महाप्रज्ञ ने शांतिदूत वनकर जन-जन का शांतिपथ प्रशस्त किया, वो अहिंसा के क्षेत्र में कार्य करने वालों के लिए एक मिशाल है जो सदियों तक आलोकित करती रहेगी। अहिंसा की नीति अहिंसा को धर्म के चोखटे से बाहर निकाल कर व्यापक रूप में प्रतिष्ठित करने वालों में महात्मा गांधी का नाम अग्रणी है, उसी कड़ी में अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य महाप्रज्ञ का नाम भी शुमार है। उन्होंने अहिंसा को 'नीति नियामिका' के रूप में प्रस्तुत कर हर वर्ग के व्यक्ति का उचित पथदर्शन किया है। अहिंसा एक सर्वोत्तम दीर्घकालीन स्वस्थ नीति है। अहिंसा धर्म है। अहिंसा एक नीति है और उससे आगे वह एक कूटनीति है। धर्म के संदर्भ में विचार करें तो कहना होगा-अहिंसा धर्म है। परिग्रह और संग्रह की चेतना से विरत व्यक्ति के लिए अर्थात एक मुनि के लिए अहिंसा धर्म है। आत्मधर्म मानकर मुनि अहिंसा की सर्वोच्च भूमिका पर आरूढ़ होने का सतत् अभ्यास करता है। जो समाज और शासन का मुखिया है, उसके लिए अहिंसा एक नीति है। जहाँ अनेक संस्कृतियों, 102 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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