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________________ राष्ट्र में होने वाले संघर्ष का मूल कारण है-व्यक्ति का बहिर्बोध। जब तक व्यक्ति अंतर्बोध को जागृत नहीं करेगा तब तक अहिंसा का विकास नहीं होगा तथा समस्या का समाधान भी संभव नहीं होगा। अन्तर्बोध से ही व्यक्ति के भीतर विवेक चेतना का जागरण होगा। इस तथ्य का संपोषक चिंतन रहा कि अहिंसा के विकास की दृष्टि से चिंतन और चर्चाएं बहुत चलती है। पर उससे कोई स्थाई निष्पति नहीं आती, अहिंसा के संस्कार स्थाई बनें। इसके लिए प्रयोग और प्रशिक्षण बहुत जरूरी अहिंसा विकास के तीन प्रमुख आधार हैं1. ज्ञान का विकास। 2. आनंद अथवा सुख का विकास। 3. शक्ति का विकास। हम बाहरी ज्ञान, बाहरी सुख और बाहरी शक्ति के विकास की आंतरिक ज्ञान, सुख और शक्ति के साथ तुलना करें। यदि अंतर का ज्ञान, सुख और शक्ति प्रकट हो जाए तो हिंसा की जरूरत ही नहीं रहेगी। अहिंसा का विकास अपने आप होगा।। 'अहिंसा सर्वव्यापी जातिगत नियम है।' इस प्रस्थापना के साथ आचार्य महाप्रज्ञ ने इसे व्यापक संदर्भो में प्रस्तुति दी। अहिंसा विकास की दृष्टि से कतिपय महत्त्वपूर्ण संदर्भो की ओर ध्यान केन्द्रित किया। इस बात पर बल दिया कि हिंसा मुक्त समाज की रचना करनी है, समाज में समरसता लानी है, तो मानसिक हिंसा से बचें। किसी के प्रति अन्यथा भाव न रखें। किसी के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण और नकारात्मक भाव न बनाएं। अगर इस मानसिक हिंसा को कम करने में सफल रहे तो अहिंसा अपने आप फलिता हो जाएगी। उन्होंने बताया-मानसिक हिंसा से बचने का सबसे अच्छा सूत्र है सकारात्मक दृष्टिकोण। परिवार में एक दूसरे के प्रति मानसिक अहिंसा का व्यवहार रहे तो शायद इस धरती पर स्वर्ग का अवतरण हो जाए।12 इस मंतव्य के आलोक में मानसिक अहिंसा का विकास अत्यंत उपयोगी है। अहिंसा विकास के संदर्भ में अनुशास्ता की सोच बहु आयामी है। अहिंसा को केवल मारने तक सीमित न करें। अगर हम सुख चाहते हैं, शांति चाहते हैं, परस्पर में मैत्री और अच्छे संबंध चाहते हैं तो वाणी की अहिंसा का विकास करें। किसी के लिए कटु शब्द न निकले, किसी के मर्म पर अंगुली न टिकाएं, किसी पर आपेक्ष न करें, यह होगी हमारी वाचिक अहिंसा, जिसकी आज जरूरत है। ऐसा लगता है कि अभी भी भारतीय मानस में वाचिक अहिंसा का समुचित विकास नहीं हुआ वाचिक अहिंसा मानवीय संबंधों में मधुरिमा भरती है। महाप्रज्ञ ने आह्वान किया- वाणी की अहिंसा पर विचार करें और नित्यप्रति जीवन में उसे महत्व दें। कुछ दिन प्रयोग और परीक्षण करके देखें तो आप पाएंगे कि दूसरों की दृष्टि में आपके प्रति कितना परिवर्तन आ रहा है। कायिक हिंसा वाणी के कारण होती है। वाणी की अहिंसा के द्वारा स्वयं अशांत नहीं बनेंगे, न दूसरों की शांति भंग होने का कारण बनेंगे। इस संदर्भ में वाणी का संयम भी महत्त्वपूर्ण है। कायिक, वाचिक, और मानसिक हिंसा-अहिंसा में अन्तः संबंध है। किसी एक की अनुपालना में अन्य का संयम जरूरी है। ये अहिंसा विकास के सहकारी घटक है जो वैयक्तिक और सामूहिक उभय पथ को प्रभावित करते 100 अधर में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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