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________________ मन्तव्य है कि वेद का यह प्रचलित अर्थ उचित नहीं है, क्योंकि संसार में जितने भी जीव हैं, उनके हर क्षण किसी न किसी वेद का उदय होता है। उनके अनुसार कर्तृत्वभाव पुरुषवेद है, भोक्ततृत्व भावना स्त्रीवेद है तथा दोनों की मिली-जुली भावना नपुंसक वेद है। उन्होंने दूसरा अर्थ भी दिया है, जिसके अनुसार जो स्वयं अपने पुरुषार्थ से प्रवृत्ति करते हैं वे पुरुषवेदी हैं, जो प्रवृत्ति करने में पर के आलम्बन की अपेक्षा रखते हैं वे स्त्रीवेदी हैं तथा जो कुछ भी करने में सक्षम नहीं है वे नपुंसकवेदी हैं। __ आयुकर्म एक ऐसा कर्म है जो किसी जीव का एक भव में स्थितिकाल निर्धारित करता है। उदाहरणार्थ मनुष्यभव में एक जीव आयुकर्म के अनुसार ही अमुककाल तक जीवित रहता है। लोढ़ा सा ने आयुष्य को जीवनीशक्ति कहा है तथा आयुष्यबलप्राण उस जीवनीशक्ति का सूचक होता है। आयुकर्म चार प्रकार का है-नरकायु, तिर्यंचायु, मनुष्यायु और देवायु। नरकायु के पाप प्रकृति में तथा शेष तीन को पुण्य प्रकृति में सम्मिलित किया जाता है। __ भगवती सूत्र शतक ८ उद्देशक ९ के अनुसार नरकायु का बंध महारम्भ, महापरिग्रह, मांसाहार एवं पंचेन्द्रिय जीवों का वध करने से होता है। महारम्भ, महापरिग्रह तृष्णा या लोभ के द्योतक हैं, अतः नरकायु के बंध का मुख्य हेतु लोभ कषाय है। तिर्यंचायु में माया कषाय की प्रधानता होती है। मनुष्यायु बंध के हेतु हैं-प्रकृति से भद्रता, विनीतता, मृदुता, ऋजुता, दयालुता, अमत्सरभाव और आरम्भ-पतिग्रह की अल्पता। देवायु के बंध के कारण हैं- सरागसंयम, संयमासंयम, बालतप और अकाम निर्जरा। ___ आयुबन्ध प्रायः वर्तमान जीवन को दो तिहाई भाग व्यतीत होने के पश्चात् होता है। इसका तात्पर्य है कि प्राणी की जैसी प्रवृत्ति प्रगाढ़ हो जाती है तथा वह प्रकृति या आदत का रूप धारण कर लेती है तो उसके अनुरूप ही वह आगे का भाव धारण करता है। आयुष्य कर्म जीवन में एक बार ही बंधता है, जबकि गति का बंध निरन्तर होता रहता है। नामकर्म शरीर एवं उससे सम्बद्ध नाना रूपों का सूचक तो है ही, साथ ही तीर्थंकर एवं यशः कीर्ति सदृश कर्मप्रकृतियों का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह शरीर, इन्द्रिय, मन, वचन तथा इनकी सक्रियता से सम्बन्धित है। इसमें गति, जाति शरीर, अंगोपांग, बंधन, संहनन, संस्थान आदि शरीर से सम्बद्ध प्रकृतियाँ बंध तत्त्व [225]
SR No.022864
Book TitleJain Tattva Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2015
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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