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तीसरी बात यह भी है कि संगीतज्ञ जो संगीत सुना रहा है एवं स्वयं आनन्दित हो रहा है, उसका अपना भी तो कोई कर्म होगा, जिससे उसे साता का अनुभव हो रहा है। इस तरह विभिन्न प्रश्न खड़े होते हैं, अतः निमित्त से कर्म उदय में आते हैं, यह मानना तो उचित है, किन्तु निमित्त की प्राप्ति कर्म के उदय से होती है, यह मन्तव्य उचित नहीं है। निमित्तों की मनोज्ञता-अमनोज्ञता की वैयक्तिक स्वभाव एवं रुचि पर निर्भर करती है। जिस विष्ठा की दुर्गन्ध से मनुष्य नाक सिकोड़ कर असाता का अनुभव करता है, उसी विष्ठ का स्वाद एक सूअर को मनोज्ञ प्रतीत होता है। अतः साता वेदनीय या असाता वेदनीय के उदय से किसी वस्तु की प्राप्ति-अप्राप्ति नहीं होती है। हम सामान्यजन कार्य का कारण का आक्षेप कर सम्बद्ध वस्तु को भी अपने कर्म का फल मानते है, जो एक भ्रम है। ___जो कर्म जीव को मोहित करे, मूर्च्छित करे, हित-अहित पहचान न होने दे वह मोहनीय कर्म है। ज्ञानावरणादि आठों कर्मों में मोहकर्म प्रधान है। इसे कर्मों का राजा कहा जाता है। मोहकर्म के दो पक्ष हैं- दर्शन मोहनीय एवं चारित्र मोहनीय व्यक्ति की आन्तरिक दृष्टि का निर्धारण करता है तथा चारित्र मोहनीय उसके भावात्मक आचरण को द्योतित करता है। भीतरी दृष्टि में यादि पर पदार्थे में आसक्ति भाव है तो निश्चित ही दर्शनमोहनीय का प्रभाव है तथा आचरण में यदि क्रोध, मान, माया एवं लोभ का अस्तित्व हो तो चारित्र मोहनीय कर्म का परिणाम है।
दर्शनमोहनीय के तीन प्रकार हैं-मिथ्यात्व मोहनीय, सम्यक्त्व मोहनीय एवं मिश्र मोहनीय। मिथ्यात्व मोहनीय का दूसरा नाम मिथ्यात्व एवं मिथ्यादर्शन भी है। सत्य तत्त्व के प्रति श्रद्धा न होकर अनित्य पदार्थों के भोगों के प्रति श्रद्धा होना मिथ्यात्व मोहनीय है। सम्यग्दर्शन से जनित शान्ति के सुख में रमणता अथवा उसका भोग सम्यक्त्व मोहनीय कर्म है। दूसरे शब्दों के सम्यक्त्व में मोहित होना, आगे न बढ़ना सम्यक्त्व मोह है। सम्यक्त्व मोह एवं मिथ्यात्व मोह का मिश्रण मिश्र मोह है। इसका उदय एक अन्तर्मुहूर्त से अधिक काल तक नहीं होता है। सम्यग्दर्शन होने के पूर्व दर्शनमोहनीय की इन तीनों प्रकृतियों का उपशम, क्षय या क्षयोपशम होना अनिवार्य होता है। कर्मबंध के समय मात्र मिथ्यात्वमोहनीय कर्म प्रकृति का बंध होता है, जबकि उदय के समय यह प्रकृत्ति तीन स्वरूपों में प्रकट हो सकती है जिन्हें मिथ्यात्वमोहनीय, सम्यक्तव मोहनीय एवं मिश्र मोहनीय (सम्यक्त्वमिथ्यात्वमोहनीय) कहा गया है।
बंध तत्त्व
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