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________________ नहीं, यह सम्यक्त्व है। पर-पदार्थ से सुख-भोग के लिए प्रवृत्ति न करना, विषयभोगों से विरत होने विरति है, संयम है। समभाव में रहना, कषाय का उपशम व क्षय करना अर्थात् अकषाय होना चारित्र है। अशुभ योगों के निरोध से, त्याग से स्वतः शुभ योग होता है। सम्यक्त्व, विरति अकषाय और शुभ योग संवर है। संवर पुण्यास्रव का हेतु है। अतः पुण्यास्रव त्याज्य नहीं है, पापास्रव ही त्याज्य है। पापासव के त्याग में ही आत्म-हित निहित है। विशेष जानकारी के लिए लेखक की पूर्व प्रकाशित पुस्तक 'आम्रव-संवर तत्त्व' में निम्नांकित प्रकरण पठनीय हैं ३. सम्यग्दर्शन और मिथ्यात्व : एक आगमिक विश्लेषण, ४. सम्यग्दर्शन के लक्षण, ५. सम्यग्दर्शन और भेद विज्ञान, ६. व्रत बन्धन नहीं, मुक्ति है,७. त्याग का स्वरूप एवं महत्व, ८. महत्त्व दोषों की कमी का नहीं, दोषों के त्याग का है, ९. सुख, शान्ति एवं मुक्ति का उपाय : त्याग, १०. अतिभोग को संयम व त्याग का हेतु मानना घोर भूल, ११. भोग : भव-भ्रमण का कारण, १२. वैज्ञानिक युग में श्रावक धर्म की महत्ता एवं आवश्यकता, १३. तीन मनोरथ, १४. श्रमण धर्म : समिति - गुप्ति की साधना, १५. अहिंसा के दो रूप, १६. अहिंसा और विवेक, १७. अहिंसा का सकारात्मक रूप, १८. सकारात्मक अहिंसा धर्म है, १९. परिग्रह और अपरिग्रहः एक विशेषण, २०. विकथा - त्याग, २१. वोसिरामि : एक विवेचन, २२. प्रत्याख्यान, वोसिरामि और मिच्छमि दुक्कडं, २३. उट्ठिए णो पमायए, २४. गति नहीं, प्रगति करें, २५. कषाय की कमी से पुण्यास्रव और कषाय की वृद्धि से पापासव, २६. वैर बनाम मैत्री : एक मनोवैज्ञानिक विशेषण, २७. करुणा और मोह में भेद, २८. करुणा विभाव नहीं, स्वभाव है, संवर है, २९. मैत्री भाव, ३०. मार्दव, ३१. शुभ योग संवर क्यों? ३२. अशुद्ध-शुद्ध भाव और शुभ - अशुभ योग का अन्तर, ३३. सामायिक : सर्व साधनाओं की भूमि, ३४. सामायिक के प्रतिज्ञा-पाठ का रहस्य, ३५. सत्प्रवृत्तियों का महत्त्व, ३६. जप - साधना, ३७. मौन - साधना, ३८. भक्ति - उपासना। आमुख (आम्रव-संवर तत्त्व से उद्धृत) - धर्मचन्द जैन बन्धन और मुक्ति की प्रक्रिया को जानने की दृष्टि से जैन दर्शन में नवतत्त्वों को प्रतिपादन हुआ है। नवतत्त्व हैं-जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, बन्ध, [100] जैनतत्त्व सार
SR No.022864
Book TitleJain Tattva Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2015
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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