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श्री नेमीश्वर रास पंडित प्रवर श्री पद्मविजयजी गणिवर
श्रीमती सुमित्रा प्र. टोलिया
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कहते है कि गीत-संगीत परमात्मा की प्राप्ति के मार्ग के - परमात्मा के निकट के जानेवाले मार्ग के सोपान है। मनुष्य अपने हृदय के मधुरतमकोमलतम भावों की अभिव्यक्ति, गद्य की तुलना में पद्य के माध्यम से कहीं अधिक सुंदर ढंग से एवं स्पष्ट रूप से कर सकता है। माता या बहन की ममता की अभिव्यक्ति के लिए अगर पद्य ही श्रेष्ठ साधन बन सकता है तो संसार के सर्वश्रेष्ठ प्रेम-प्रभुप्रेम और प्रभुभक्ति के भावों की अभिव्यक्ति के लिए पद्य का माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाय उसमें आश्चर्य कहाँ?
मनुष्य मनोरंजनप्रिय होता है। अत: मोह-मान-माया-लोभ जैसे कुत्सित भावों में - परभावों में लिप्त मानस को भक्ति की ओर मोडने के लिए तीर्थंकर भगवंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव-प्रतिवासुदेव आदि के एवं अन्य साधकों के जीवन को कथारूप में संगीतबद्ध करके उनके समक्ष प्रस्तुत करने से ये बातें तीर की तरह उनके हृदय में उतर जाती है और अनेक सरल जीवों का उद्धार हो सकता है और हुआ है। मेरे इस कथन की पुष्टि के लिए सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है हमारा प्राचीन रासो साहित्य, जो तीर्थंकरो से लेकर भरत बाहुबली, धन्ना-शालिभद्र, विजय सेठ-विजया सेठानी, स्थूलिभद्र-कोशा जैसे महान पुरुषों एवं नारियों के जीवन एवं रात्रिभोजन परिहार जैसे अनुकरणीय सिद्धातों को हमारे समक्ष रखता है । रासा साहित्य में अति प्रसिद्ध उल्लेखनीय नाम है - श्रीपाल-मयणा का रास, एलाची-कुमार रास, अंजना सुंदरी रास, धर्मबुद्धि मंत्री-पापबुद्धि राजा का रास, कान्हड कठियारा का रास, इत्यादि । ___ प्राचीन जैन साहित्य को चार प्रकारों में विभाजित किया गया है -
(१) द्रव्यानुयोग (२) गणितानुयोग (३) चरणकरणानुयोग (४) कथानुयोग
श्री नेमीश्वर रास * 561