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आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : पूर्व-पीठिका
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इतना सजीव वर्णन किया है कि कवि की वर्णन-शक्ति का इससे पता चलता है। वे अध्यात्म-रस के रसिक थे, यह बात उनकी कविता से स्पष्ट रूप से झलकती है। यथा
जहां रीति-प्रीति संग सुमतिनारि, शिव रमणी को कियो विचार। जिन चरण कमल चित्त बसो मोर, कहें 'कमलनय' रति-साधु भोर॥
इसके अतिरिक्त कवि ने 'जिनदत्त चरित्र' का पद्यानुवाद एवं 'सहस्त्रनामपाठ', पंचकल्याणपाठ' और 'वरांग चरित्र' आदि ग्रन्थ लिखे हैं। उनकी कविता मधुर, सरल एव लोकोपकारी होने से सफल कवि माने जाते हैं।
___ अमृतविजय गुरु के योग्य शिष्य रंग विजय जी ने बहुत से आध्यात्मिक और विनति के पद रचे हैं। उनकी रचना सरल और रसपूर्ण है। वैष्णव कवियों ने जैसे राधा और कृष्ण को लक्ष्य करके भक्ति और श्रृंगार की रचना की है, वैसे ही उन्होंने भी राजीमती और नेमिनाथ के विषय में बहुत से शृंगार भाव के पद लिखे हैं।
नथमल विलाला ने सं० 1824 से 1835 के बीच में 'सिद्धान्तसारदीपक' जिनगुणविलास, नागकुमार चरित्र, जीवंधर चरित्र और जम्बुस्वामी चरित्र ग्रन्थ पद्य में रचे थे। इनकी कविता साधारण है।
सेवाराम राजपूत के रचे हुए 'हनुमन्चरित्र' शांतिनाथपुराण, और भविष्य दत्त चरित्र है। मारामल्ल जी ने 'चारुदत्त चरित्र, सप्तव्यसनचरित्र, दानकथा, शीलकथा, दर्शन कथा, रात्रिभोजन कथा आदि ग्रन्थ लिखे हैं। इन ग्रन्थों का पद्य साधारण है लेकिन कथा काव्य होने से अत्यन्त लोकप्रिय हुए हैं।
___ कवि नयनसुखदास जी एक प्रसिद्ध कवि थे। उनकी रची हुई कविता बड़ी रोचक और भावपूर्ण है। उनकी वाणी में अध्यात्म की भक्ति-सरिता बहती रहती है। कवि प्रभु-मूरति के विषय में कहते हैं
ए जिन मूरति प्यारी रागद्वेष बिन, पाणि लषि शान्त रस की। त्रिभुवन मुनि पाय सुरपतिहूं, राषत चाह दरस की॥ कौन कथा जगवासी जन की मुनिवर, निरषि हरषि चषि मुख की। अन्तरभाव विचार धारि उर, उगमन सरित सुरस की॥ महिमा अद्भुत आन गुनन की, दरसत ते सम्यक निज बसकी। नयन विलोकत रहेत निरन्तर, बानि बिगारि असल की।
कवि मनुष्य को बताते हुए निरन्तर प्रभु ध्यान में चित्त लगाने को कहते रहते हैं। 1. पं. नाथूराम प्रेमी जी-हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ० 78-79.