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आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : पूर्व-पीठिका
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कवि निर्मल की रची हुई 'पंचाख्यान' नामक संस्कृत रचना का हिन्दी पद्यानुवाद है। नीति का यह सर्व-साधारण के लिए उपयोगी सुन्दर ग्रन्थ है
प्रथम जयूं अरिहंत, अंग द्वादश जु भाव घर, गणधर गुरु संत, नमो प्रति गणधर निरन्तर।
कवि धर्मपाल ने सं० 1817 में 'श्रुतपंचमीरास' और 'आदिनाथ सावन' को रचा था। पाण्डे लाल जी ने सं० 1817 में 'वरांग-चरित्र' की रचना की थी। स्त्रियों के चित्रण में कवि लिखते हैं
'रूप की निधान गुनि पानी वर नाहिं जहां, चंचल कुरंग सम लोना करति है। उन्नत चमेर कूज जुग में उमंग भरी, सुन्दर हवा हरों हार पहराति है। लाज के समाज बची विघने सदारि रची, शील मार लिये ऐसे सोमा सरसाती है। तारा ग्रह नषत माला वेस धरे मानो, मेरु गिरि शिखिर की हांसी ने करती है।'
नारी के सौन्दर्य का चित्रण है, फिर भी कहीं अश्लीलता नहीं है। कवि ने नारी सौन्दर्य का सौम्य सुन्दर वर्णन किया है। उसी प्रकार मुनिजन की पवित्रता को भी कवि यहां चित्रित करते हैं
'श्री मुनिवर बिहिं देस विषे अति शोभा धारत। तप कर छीन शरीर शुद्ध निज रूप विचारत॥ भव-भव में अब मार किये जे संचा जग में। देखत ही ते दूरि करत भविजन के छन में।
प्रतिभा शक्ति के द्वारा कवि देश और व्यक्ति का सुन्दर चरित्र-चित्रण कर सकते हैं। प्रेमी जी ने इनके रचे हुए ग्रन्थों में 'षट्कर्मोपदेश रत्नमाला', वरांगचरित, विमलनाथ-पुराण, शिखर विलास, सम्यक्त्व कौमुदी, आगमशतक और अनेक छन्दोबद्ध पूजाग्रन्थ बताये हैं।
विजयकीर्ति भट्टारक ने सं० 1827 में ' श्रेणिकचरित' और सं० 1821 में 'महादण्डक' नामक सिद्धान्त ग्रन्थ रचे थे।
बखतराम शाह जयपुरवासी ने स्वयं दो ग्रन्थ-'मिथ्यात्वखण्डन' और 'बुद्धिविलास' रचे और उनके पुत्र जीवनराम ने प्रभु-भक्ति के कुछ पद रचे और दूसरे पुत्र सेवाराम जी ने सं० 1858 और 1862 के बीच में 'शांतिनाथ चरित्र' नामक ग्रन्थ रचा था।