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________________ 12 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य कवि झुनकलाल जी की 'नेमिनाथ जी के कवित्त' नामक रचना इस समय प्राप्त होती है, जिसकी भाषा एवं भाव पक्ष काफी अच्छा है। इसी प्रकार दूसरी रचना उन्होंने अतिसुखराय जी नामक धर्मात्मा के कहने से सं० 1844 में 'पार्श्वनाथजी के कवित्त' नाम से रची। कवि भक्तिपूर्वक कहते हैं मित्र सुमति सुषने कही, सुनिये झुनकलाल, श्री जिन पारसनाथ की, वरन करो गुणमाल, मोक्ष हेतु के कारे न कियो पाठ सुविचार वे भविजन सरधा करे, ते सिवपुर के बार। इस प्रकार 'नेमिनाथ जी के कवित्त' में भी कवि का भक्तिपूर्ण दृष्टिबिन्दु स्पष्टतः झलकता है-कवि ने सांसारिक सम्बंधों की मधुरता का कैसा सुन्दर चित्रण नैमिनाथ जी एवं उनकी भोजाइयों के वर्णन में किया है नेमिनाथ को हाथ पकरिके खड़ी भई भावज सारी, ओढ़े चीर तीरसरवर कें तहां खड़ी है जदुनारी, बहुत विनय धरि हाथ जोरि करि मधुर स्वर गावें नारि॥ कहीं-कहीं तो कवि की रचना में अत्यन्त ही माधुर्य एवं सरसता देखने को मिल जाती है "रूप के रंग मानो गंग की तरंग सम इन्दु दुति अंग ऐसे जल सुहात है। ससि की किरणी कियों मेह तट झरनि कियो चन्द की भर्ति कियों मेघ बरसात हैं। हीरा सम सेत रवि-छवि हरि लेते किधों मुक्ता दुति दोष मन सरसात है। सिव तिय अपने पति को सिंगार देषि रकतु कटाछ ऐसे चमर फहरात है। सं० 1817 में लिखी गई कवि केसोदास जी की 'हिंडोला' नामक रचना भी इसी समय मिलती है सहज हिंडोलना झूलत चेतनराज। जहां धर्म कर्म संजोग उपजत, रस सुभाउ विभाउ॥ जहां सुमन रूप अनूप मंदिर, सुरुचि भूमि सुरंग। तहां गान वरसन बंध अविचल छरन आड़ अमंग॥ कवि इन्द्रजीत का रचा हुआ 'श्री मुनि सुमत पुरान' दिल्ली के नया मंदिर के ग्रंथागार में मिलता है, जिसको कवि ने मैनपुरी में सं० 1845 में लिखा था।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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