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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
और ज्ञानवान पिता जी के पास रहकर शिक्षा ग्रहण की थी और बाद में गोकुलचन्द नामक ज्ञानी पुरुष की प्रेरणा से उन्होंने 'हरिवंशपुराण' का पद्यानुवाद किया था। खुशालचन्द जी ने हरिवंश पुराण, उत्तर-पुराण, धन्यकुमार चरित, यशोधर चरित, अम्बू चरित सद्भावनावली, व्रतकथा कोष और पद्मपुराण का निर्माण किया था। इनमें पद्मपुराण और अम्बू चरित अनूदित है। उपरोक्त दोनों कवियों का विस्तृत वर्णन प्रेमसागर जी की पुस्तक में उपलब्ध होता है।
कविवर निहालचन्द (18वीं शती का अंतिम पद) ने पांच रचनाएं लिखीं, जिनमें तीन अपनी मातृभाषा गुजराती में की ओर अन्य दो हिन्दी में। 'ब्रह्मबावनी'
और 'बंगाल देश की पुकार' उनकी बहुत ही लोकप्रिय रचनाएं हैं। प्रेमी जी ने विनोदीलाल सहजादिपुर का उल्लेख किया है, जिन्होंने दिल्ली में आकर 'भक्तामर' और 'सम्यकत्व कथाकोष' की छन्दोबद्ध रचनाएं हैं। उनकी ओर भी फुटकर रचनाएं प्राप्त होती हैं।
पं० बखतराम ने सं० 1800 में 'धर्मबुद्धिकथा' एवं 'मिथ्यात्वखण्डन वचनिका' की रचना की थी।
पं० भैंरोदास जी ने इसी समय 'सोलह कारण व्रत कथा' रची थी। कवि मकरंद पद्मावती पुरवाल की रची हुई एक ओर 'सुगन्ध दसमी कथा' है। पन्नालाल जी ने सेठ फूलचन्द जी के कहने पर 'रत्न करण्ड श्रावकाचार' का पद्यानुवाद किया था। इन सबके अतिरिक्त अनेक छोटे-मोटे कवियों का उल्लेख कामताप्रसाद जी ने अपने इतिहास में अत्यन्त संक्षेप में किया है, जिनमें से प्रमुख नाम हैं-रत्नसागर कृत 'रत्न-परीक्षा', पं. नेमिचन्द्र कृत नेमिचन्द्रिका, देवेन्द्र कीर्ति की जकड़ी, पं० बिशनसिंह की 'बिशियोजनकथा', पं. देवराज कृत 'होलीकथा', का नाम प्रमुख है। मिश्रबन्धु विनोद में निम्नलिखित कवियों का उल्लेख पाया जाता है-सौभाग्यचन्द की 'कपटलीला', हरखचन्द साधु का श्रीपाल चरित, धर्ममंदिरगणिकृत प्रबन्ध चिन्तामणि, गोपीमुनि चरित, हंसविजय जति का 'कल्पसूत्रटीका, ज्ञान-विजय जती का 'मलयचरित' और कवि लाभबर्द्धन का 'उपपदी' नामक ग्रन्थ देखने को मिलता है। 18वीं शताब्दी के बाद 19वीं शताब्दी में हम आते हैं तो जैन-साहित्य में भी भक्ति का स्वरूप मंद अवश्य हो गया था, लेकिन फिर भी भक्ति की रचनाएं अवश्य होती थीं। पद-मुक्तक की रचनाएं 17वीं-18वीं शताब्दी की तरह प्रबन्ध की अपेक्षा अधिक होती है। इस शती में पं. टोडरमल और कवि वृंदावन जेसे समर्थ तत्त्ववेत्ता, विद्वान एवं भावुक कवि हुए, जिन्होंने साहित्य और समाज की भारी सेवा की। "जैन समाज स्थितिस्थापक बनकर विवेक को खो बैठा था।