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________________ आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : पूर्व-पीठिका 2 है कि वे जगतराय के पुत्र टेकचन्द के शिक्षक भी हो।' श्री अगरचन्द नाहटा जी ने लिखा है - जगतराम एक प्रभावशाली धर्म प्रेमी और कवि आश्रयदाता तथा दानवीर सिद्ध होते हैं। इनकी रचनाओं के विषय के विवाद खड़ा है। कामताप्रसाद जी ने केवल एक ही कृति 'पद्मानंदीपच्चीसी' का ही उल्लेख किया है, जबकि प्रेमी जी ने तीन छन्दोबद्ध रचनाएं बताई हैं- आगमविलास, सम्यकत्व कौमुदी, और 'पद्मानंदीपच्चीसी' जबकि सेठ के कूंचे मंदिर दिल्ली के शास्त्र - भंडार की ग्रन्थ सूची में इनके अतिरिक्त 'छन्द रत्नावली' और 'ज्ञानानंद श्रावकाचार' की रचना भी उपलब्ध होती है। 'श्रावकाचार' गद्य की रचना है। जैन पदावली' में जगतराय के रचे हुए 233 पद हैं। उनके ग्रन्थों की आलोचनात्मक टिप्पणी लिखते हुए संपादकों ने कहा है कि - " इन्होंने अष्टछाप के कवियों की शैली पर पदों की रचनाएं की हैं, जिनका एक संग्रह खोज में प्रथम बार उपलब्ध हुआ है। इसमें तीर्थंकरों की स्तुतियाँ सुन्दर पदों में वर्णित की गई हैं। उनकी छोटी-छोटी रस की पञ्चिकारियों से मालूम होता है कि उनके पदों में कवि का उद्दाम आवेग कैसे फुट पड़ता है।' कवि ने एक जगह प्रभु को विनति, क्षमा-याचना करते हुए सुन्दर भावों को व्यक्त किया हैप्रभु विन कौन हमारी सहाई । 4 और सब स्वारथ के साथी, तुम परमारथ भाई, भूल हमारी ही हमको इह भयो महादुःख, विषय कषाय सस्य संग सेवो, तुम्हारी सुध बिसराई । ये उनके अनेक पदों में आध्यात्मिक फागुओं की अनोखी छटा विद्यमान है। फागु छोटे-छोटे रूपकों में रचे गये हैं। इसका एक उदाहरण देखिएसुध बुधि होरि केस संय लेयकर, सुरुचि गुलाल लगा रे तेरे । समता जल पिचकारी, करुणा केसर गुण छिरकाय रे तेरे । अनुभव पाति सुपारि चरचानि, सरम रंग लगा रे तेरे । राम कहे जे इह विधि षेल, मोक्ष महल में आय रे तेरे ॥ 63 सं० 1753 में देवदत्त दीक्षित ने 'चन्द्रप्रभ पुराण' छन्द बद्ध रचा था। जिसकी प्रति जसवन्तनगर के मंदिर में मौजूद है। कवि बुलाकीदास जी का जन्म 'जैमी' जैसी प्रसिद्ध विद्वान बुद्धिमती स्त्री से हुआ था, जो स्वयं कविता करती थी। जैमी के पिता जी ने कवि हेमराज पाण्डे ने उसको प्रारंभ में ही 1. प्रेमसागर - हिन्दी जैन साहित्य और कवि, पृ० 253. 2. द्रष्टव्य - अगरचन्द नाहटा - भारतीय साहित्य, वर्ष-2, अंक-2, पृ० 181. 3. काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका का पन्द्रहवां ( 15 ) त्रैवार्षिक विवरण सं० 94. 4. डा. प्रेमसागर जैन - हिन्दी जैन आधुनिक काव्य और कवि, पृ० 256
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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