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आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य
हैं-'प्रवचन सार टीका', 'पंचास्तीकाय टीका', और 'भाषा भक्ताभर' । प्रथम दोनों गद्य की रचना है और 'भाषा - भक्तामर' मानतुंगाचार्य के स्तोत्रों का हिन्दी पद्यानुवाद है। उन्होंने 'गोम्मटसार' और 'नयचक्र' की वचनिका भी लिखी थी। उनकी एक अन्य 'सीतपट चौरासी बोल' नामक कृति है। जिसके विरोध में यशोविजयजी ने ‘दिक्पट चौरासी बोल' को रचा था।
'मिश्रबन्धु विनोद' के आधार पर से प्रेमी जी ने सत्रहवीं शती के निम्नलिखित कवियों का उल्लेख किया है
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उदयराज जती ने कुछ राजनीति सम्बंधी दोहे लिखे थे।
विद्याकमल जी ने सं० 1669 ने सं० 1669 में 'भगवतीगीता' नामक स्तवनों का संग्रह रचा था। मुनि लावण्य ने 'रावण मंदोदरी संवाद' सं० 1669 में बनाया था। गुणसूरि ने सं० 1696 में 'ढोलासागर' बनाया। लूणसागर ने सं० 1689 में 'अंजनासुन्दरी संवाद' नामक ग्रन्थ रचा था। इसी शती में कृषिराय कृत 'सुदर्शन चरित्र' अज्ञात कवि कृत 'त्रोयनक्रिया रास' और सोमकीर्ति जी की 'यशोधर रास' की हस्तलिखित प्रति उपलब्ध होती है । तदुपरान्त पं० पृथ्वीपाल जी अग्रवाल की 'श्रुतपंचमीरास' और पं० वीरदास जी की 'सीख पचीसी' की प्रति भी प्राप्त होती है।
इस काल का गद्य :
इस काल में गद्य का भी थोड़ा-बहुत सृजन होने लगा था, यद्यपि साहित्य सृजन मुख्य रूप से पद्य में ही होता था। इस काल के गद्य पर ब्रज- अवधी का काफी प्रभाव था। यह गद्य कहीं-कहीं पद्यमिश्रित भी था। वैसे खड़ी बोली पद्य का श्रीगणेश इस काल में हो चुका था। इस समय पद्य की काफी समृद्ध रचनाएं प्राप्त होती है, लेकिन गद्य का एक ही ग्रन्थ मिलता है। कामताप्रसाद जी लिखते हैं- ' इस काल की गद्य में लिखी हुई केवल एक ही बड़ी कृति हमारे ज्ञान में आई है वह है 72 पत्रों में लिखा हुए श्री शाहमहाराज - पुत्र रायरघुकृत 'प्रद्युम्न चरित' नामक ग्रन्थ। इसकी एक प्राचीन प्रति सं० 1698 की लिखी हुई श्री जैन मंदिर, शेठ का कूंचा दिल्ली के शास्त्र भण्डार में मौजूद है।" तदुपरान्त पं० बनारसीदास जी ने भी गद्य के कुछ अंश लिखे थे। इसका नमूना दृष्टव्य है
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'अथ परमार्थ वचनिका लिख्यते। एक जीवदृव्य ताके अनन्त गुण अनन्त पयार्य। एक-एक गुण के असंख्यात प्रदेश, एक एक प्रदेशनि विषे अनन्त
1. पं० नाथूराम प्रेमी - हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, पृ० 53. 2. श्री कामताप्रसाद जैन - हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ० 135.