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________________ आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : पूर्व-पीठिका संग्रह 'जसविलास' में 75 मुक्त पद्यों संग्रहीत हैं। सभी पद जिनेन्द्र की भक्ति से सम्बन्धित है। आराध्य देव की निष्ठापूर्वक भक्ति में लीन होकर कवि गाते हैं हम मगन भये प्रभु ध्यान में। बिसर गई दुविधा तन-मन की, अचिरा सुत गुन गान में। हरिहर पुरदंर की रिषि आवत नहि कोउ मान में। चिदानंद की मौज मची है, समता-रस के पान में। इतने दिन तूं नाहि पिछाव्यो, जनम गंवायो अजान में। अब तो अधिकारी हुये बैठे, प्रभु गुन अखय खजान में। गई दीनता सभी हमारी, प्रभु तुझ समकित दान में। प्रभु गुन अनुभव के रस आगे, आवत नहिं कोउ ध्यान में॥ कविनन्द ने सं० 1670 में 'यशोधर-चरित भाषा चोपाई' नामकग्रन्थ रचा। उनका 'सुदर्शन चरित्र' भी पंचायती मंदिर दिल्ली से प्राप्त होता है। कर्मचन्द्र कृत 'मृगावती चोपाई' भी इसी शती की रचना मानी गई है। वागड़ देश के निवासी सुन्दरदास जी ने 'सुन्दर सतसई' और 'सुन्दर-विलास' नामक दो ग्रन्थों की रचना की थी। इसमें कवि ने बड़ी सुन्दरता से लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग किया है। अध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा कवि ने प्रमुख रूप से की है। जिया मेरे छोड़ि विषय रस ज्यों सुख पावें। सब ही विकार जति जिन गुण गावें। घरी घरी पल पल जिन गुण गावें। तामें चतुर गति बहुरि न आवें। जो नर निज समग्र चित्त लावे। सुन्दर कहत अचल पद पावें॥ मुनि सुमतिकीर्ति ने सं० 1625 में 'धर्मपरीक्षा रास' नामक ग्रन्थ लिखा था। कवि छीतर ने 'होली की कथा' नामक साधारण कोटि का ग्रन्थ लिखा था। उसी प्रकार उज्जैन निवासी कवि विष्णु ने सं० 1666 में 'पंचमी व्रत कथा' की रचना की, जिसमें भविष्यदत्त की कथा वस्तु ली गई है। भानुकीर्ति मुनि ने सं० 1608 में 'रविव्रतकथा' और त्रिभुवन कीर्ति ने 'जीवनधर रास' नामक कृति की रचना की थी। कवि गुणसागर कृत 'द्वालसागर' भी प्राचीन भण्डार से प्राप्त होता है। पाण्डे हेमराज जी 17वीं शती के अंतिम चरण एवं 18वीं शती के प्रथम पाद के महत्वपूर्ण कवि, आचार्य हुए, जिनकी तीन कृतियां उपलब्ध होती
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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