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________________ आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : पूर्व-पीठिका में लिखा था और वीर सेवा मंदिर, सरसोवा द्वारा प्रकाशित किया जा चुका है। 2. नाटक-समय सार : कविवर जी की यह अत्यन्त प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण कृति है। इसमें इन्होंने वृतियां, इन्द्रियों तथा कर्मों को पात्र के रूप में रखा है। आध्यात्मिक प्रतीकात्मक नाटक में कवि ने अलौकिक आनंद की सृष्टि पैदा कर दी है। वैसे इस ग्रन्थ पर पूर्वाचार्यों के ग्रन्थों का प्रभाव जरूर है, फिर भी यह मौलिक ग्रन्थ ही कहा जायेगा। हिन्दी-नाटक साहित्य में प्रथम नाटक का गौरव इसी ग्रन्थ को मिलता है। कवि ने इसमें लौकिक व्यवहारिक ज्ञान के साथ आध्यात्मिक गरिमा को भी शामिल कर दिया है। इसमें कवि समताभाव गुण के विषय में कहते हैं जा के घट समता नहीं, ममता मगन सदीव। रमता राम न जानहीं, सो अपराधी जीव। जीव और शरीर की भिन्नता का विशिष्ट वर्णन करते हुए कवि कहते देह अचेतन प्रेत वही रज, रेत भरी मल खेत की क्यारी। व्याधि की पोट आधिकी ओट, उपाधि की जोट समाधि सों न्यारी। रे जिय! देह करे सुख हानि, इते परि तो हितु लागत प्यारी। देह तु तो हि तजेगी निदान वि, तूं हित जे क्यूं न देहकि यारी।' 3. बनारसी विकास : सं. 1701 में पं. जगजीवन कवि ने कविवर के फुटकर 57 पदों का संग्रह किया था। प्रायः उनकी जीवितावस्था में ही उनके पदों का संग्रह किया गया था, क्योंकि उनकी अंतिम रचना 'कर्म-प्रकृतिविधान' के 25 दिन बाद ही ये संग्रहीत किये गये थे। यदि इस 25 दिन के क्षणिक अन्तराल में यदि कवि का निधन न हो गया होता तो अश्वय पं. जगजीवनराम जी इसका उल्लेख करते। 4. अर्द्ध-कथानक : यह कविवर जी की अपूर्व रचना है। हिन्दी साहित्य की सर्वप्रथम मौलिक जीवनी का श्रेय इस रचना को दिया जाता है। सं० 1698 तक ही छोटी-बड़ी सभी घटनाओं का कवि ने इसमें वर्णन किया है। जीवन की प्रमुख आवश्यकता वास्तविकता एवं रोचकता दोनों का कवि ने बखूबी निर्वाह किया है। ग्रन्थ के अन्त में उन्होंने लिखा है कि आजकल की उत्कृष्ट आयु के 1. आ. कामताप्रसाद जैन-हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ. 119.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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