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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य नयापन है। आगरे की सुन्दरता एवं जिनालयों की भव्यता का भी इसमें सुन्दर वर्णन किया गया है। 'सुदर्शन चरित' पर अपभ्रंश के 'सुसंणचरिउ' का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है। 'गूढविनोद' में अध्यात्म सम्बन्धी पद और गीत संग्रहीत हैं। __सं० 1678 के कवि सुन्दरदास जी हिन्दी के प्रसिद्ध सुन्दरदास जी से पृथक् जैन कवि हैं ऐसा अनुसन्धान के पश्चात् निश्चित माना जाता है। उनके चार ग्रन्थों का पता चलता है-सुन्दर सतसई, सुन्दर विलास, सुन्दर श्रृंगार और पाखण्ड पंचासिका। कामताप्रसाद जी के इतिहास में इनका उल्लेख विस्तार से किया गया है। उनके सभी ग्रन्थों में जिन भक्ति झलकती है। कवि मनुष्य को जागृत होने की चेतावनी देकर प्रभु-भक्ति करने की सीख देते हैं-मनुष्य की अज्ञानता पर कवि दु:खी होकर कह उठते हैं पाथर की करि नाव पार दघि उतरयों चाहें, काग उड़ावनि काज मूढ़ चिन्तामनि बाहें। बसें छांट बादल तणी रचे घूम के घाम, करि कृपाण सेज्या रमे ते क्यों पावे विसराम॥ पंडित बनारसीदास जी केवल इसी शताब्दि या जैन साहित्य के ही नहीं, अपितु हिन्दी साहित्य के भी जगमगाते हुए अमूल्य रत्न हैं। उनकी कवित्व शक्ति सचमुच ही अद्भुत एवं सारगर्भित थी। हिन्दी साहित्य के इतिहास में प्रथम आत्म कथाकार और नाटककार के रूप में उनका स्थान निश्चित है। समाज की गतिविधि समझकर परिवर्तन करने की अपार शक्ति उनमें भरी पड़ी थी। हिन्दू-मुस्लिम एकता की नींव सबसे पहले उन्होंने ही डाली थी-'एक हिन्दू पुरुष, दूजी दशा न कोई। दोऊ भूले भरम में, भये एक सो दोऊ' कहकर उन्होंने आध्यात्मिक रूपक में एकता की भूमिका ही प्रस्तुत की है। कवि ने अपनी आत्मकथा 'अर्द्ध-कथानक' में सच्चाई से सभी प्रसंगों को हार्दिक रूप से प्रस्तुत कर उसे जीवंत एवं हृदयंगम बनाया है। इस कृति को पूरे हिन्दी साहित्य के लिए गौरव की चीज समझी जानी चाहिए। इसके सम्बन्ध में पं० बनारसीदास चतुर्वेदी का अभिमत है कि-'अर्द्ध-कथानक' का महत्व केवल जैन-साहित्य के दृष्टिकोण से ही नहीं, अपितु समग्र हिन्दी साहित्य के लिए काफी महत्वपूर्ण है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में इस ग्रन्थ का एक विशेष स्थान तो होगा ही, साथ में ही इसमें वह संजीवनी शक्ति विद्यमान है, जो इसे अभी कई सौ वर्ष और जीवित रखने में सर्वथा समर्थ होगी। हिन्दी का तो यह सर्वप्रथम आत्म चरित है ही, पर अन्य भाषाओं में इस प्रकार और इतनी पुरानी
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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