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________________ आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : पूर्व-पीठिका 39 रासा, ज्ञान पंचमी चउपई, धर्मदत्त चरित्र-उल्लेख किया है। इनके अतिरिक्त अन्य किसी ग्रन्थ का पता नहीं चलता। वि० सं० 1412 में विजयभद्र नामक श्वेताम्बर मुनि ने 'गौतम रासा' की रचना की थी, जिसमें गौतम स्वामी के रूप सौन्दर्य का सुन्दर वर्णन किया है। और भगवान महावीर के समय की सामाजिक स्थिति का भी सुन्दर निरूपण प्राप्त होने से इसे सफल ऐतिहासिक काव्य कह सकते हैं। 'ज्ञान पंचमी चउपई' की रचना इसी शती में (सं० 1413 में) जिन उदयगुरु के शिष्य विभ्रूणू ने की थी, जिसमें श्रुतिपंतमी के व्रत का माहात्म्य अंकित किया गया है। यह एक ऐसी धार्मिक रचना है, जो सामान्य जनता को लक्ष्य में रखकर की गई है। कवि ने श्रावक कुल में जन्म लेने की सार्थकता एवं प्रभु भक्ति की महत्ता व्यक्त की है। धर्मदत्त-चरित्र' का उल्लेख प्रेमी जी ने मिश्र बन्धुओं के इतिहास के आधार से किया है, जो वि० सं० 1486 में दयासागर सूरि ने रचा था। ____ 16वीं शताब्दी में हिन्दी भाषा साहित्य की काफी प्रगति हुई और सन्तों भक्तों की रसपूर्ण मधुर कविता से हिन्दी का भण्डार भरा गया है। हिन्दी जैन साहित्य में इस शताब्दी की अनेक रचनाएं प्राप्त होती हैं-जिनमें प्रमुख हैं-'ललितांगचरित्र, सार-सिखामन रास, यशोधर चरित्र, कृपण-चरित और राम-सीता चरित्र। 'ललितांग चरित' सं० 1561 में शान्तिनाथ सूरि के शिष्य ईश्वर सूरि ने बनाया था। प्रेमी जी के मतानुसार 'इसकी रचना बड़ी सुन्दर है। यद्यपि प्राकृत और अपभ्रंश का मिश्रण बहुत है।' 'सार सिखामन रास' सं० 1548 में और 'यशोधर चरित' सं. 1581 में गौरवदास नामक जैन विद्वान ने रचा था। 'कृपण चरित' सं० 1548 में कवि ठकरसी द्वारा रचा गया था, जिसकी कथावस्तु अत्यन्त रोचक और शिक्षाप्रद होने से लोकप्रिय रचना बन पाई है। प्रेमी जी ने इस रचना के विषय में लिखा है कि-'यह छोटा-सा पर बहुत ही सुन्दर और प्रसाद गुण संपन्न काव्य बम्बई के दिगम्बर जैन मंदिर के सरस्वती भण्डार के एक गुटके में लिखा हुआ मौजूद है। इसमें कवि ने एक कंजूस धनी का अपनी आंखों देखा चरित्र 35 छप्पयों में किया है।' - उपर्युक्त प्रमुख रचनाओं के अतिरिक्त भी आचार्य कामताप्रसाद ने अपने इतिहास में प्रकीर्ण रचनाओं का उल्लेख किया है, जिनमें प्रमुख है विनयचन्द्र मुनि कृत 'कल्याणकाराय' और 'चुनडी', जयकीर्ति कृत 'पार्श्वभवान्तर के छन्द', 'चन्द्रगुप्त के सोलह स्वप्न', 'विमल नाथ स्तवन', श्रीजयलाभ मुनि कृत-'मेघकुमार कथानक, श्री पद्मतिलक कृत-गर्भविचार स्तोत्र, श्री अभयदेव कृत-'संभव पार्श्वनाथ स्तोत्र, श्री गुण सागर कृत 'पार्श्व-स्तवन' इत्यादि रचनाएं हैं। 'विमलनाथ स्तवन' की भाषा पर्याप्त रूप से हिन्दी है
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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