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________________ आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य साहित्यिक वातावरण पर भी अपना प्रभाव छोड़ा, जो सहज स्वाभाविक है। हिन्दु और मुसलमान ने क्रमशः आदान-प्रदान के द्वारा एकता को अपनाने के प्रयास किये। तब स्वाभाविक है कि शासक पक्ष की भाषा का प्रभाव भी हमारी भाषा पर पड़ता हो । मुस्लिम शासकों ने व्यवस्था - कार्य के लिए अरबी-फारसी के साथ प्राचीन हिन्दी को भी स्थान दिया। राजकीय परिस्थिति से अब शान्त व हताश बनी हुई जनता में धर्म का प्रसार विशेष होने लगा, तब धार्मिक लहर से साहित्य कैसे अछूता-अलिप्त रह सकता है ? हिन्दी साहित्य के इतिहास में जैसे यह 'भक्तिकाल' कहलाया, उसी प्रकार युगीन परिस्थितियों से प्रभावित जैन साहित्य में भी भक्ति, वैराग्य, ज्ञान, नाम-स्मरण का वातावरण फैल गया। परिणाम स्वरूप पद-भजन, स्तुति के छन्द लयबद्ध मुक्तकों की रचना होने लगी। भक्तिकाल के साहित्यिक तथा ऐतिहासिक वातावरण का प्रभाव जैन - साहित्य पर काफी गहरा प्रतीत होता है। नाम-स्मरण, गुरु महिमा और स्व- लघुता का प्रभाव भी जैन कवियों पर पड़ा। इसके साथ ही छोटे-छोटे कथानक वाले खण्ड-काव्य लिखने की प्रथा भी जैन साहित्यकारों ने पूर्ववत् रखी। जैन जगत भारत की सर्वांगीण परिवर्तित परिस्थितियों से प्रभावित रहा लेकिन यहां साहित्यिक संक्रमण की ओर विशेष लक्ष्य रहा है। जैन साहित्य प्रारंभ से ही धर्म प्रधान होने से उसके लिए यह परिवर्तन अनूठा नहीं था। धार्मिक वातावरण के साथ तो यह विशेषतः तादात्म्य स्थापित कर सका। यद्यपि चरित-ग्रन्थ लिखने की प्रणाली इस समय भी विद्यमान रही, लेकिन पद और भजनों का सृजन बढ़ जाने से तात्विक साहित्य भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने लगा। धर्म के पावन आसन पर बैठकर पद-भजनों का कर्ण-प्रिय आस्वादन करके - करवाके तत्कालीन राजकीय व व्यवाहारिक अन्याय तथा मतभेद दूर करने की कोशिश जनता और साहित्यकार दोनों करते रहें। 38 भाषा के दृष्टिकोण से इस काल की प्रारंभिक साहित्यिक भाषा अपभ्रंश की ओर झुकी हुई थी, लेकिन ज्यों-ज्यों समय बीतता गया त्यों-त्यों अपभ्रंश का स्थान बोलचाल की प्राचीन हिन्दी लेने लगी और क्रमशः साहित्यिक भाषा के स्थान पर वह प्रस्थापित हुई। ब्रज और अवधि लोक बोली से मिश्रित हिन्दी का प्रचलन भी होने लगा । प्राचीन व मध्यकालीन साहित्य की ओर अंगुलि -निर्देश कर आधुनिक युग की ओर आना अभीष्ट होने से मध्यकाल के प्रबन्ध काव्यों का संक्षिप्त परिचय ही देना चाहेंगे। पं० नाथूराम प्रेमी ने 15वीं शताब्दी की तीन प्रबन्ध कृतियों का - गौतम
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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