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________________ आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : पूर्व-पीठिका 33 1. आदिकाल-11वीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी तक। 2. मध्यकाल-15वीं शताब्दी से 17वीं शताब्दी तक। 3. परिवर्तन काल-18वीं से 19वीं शताब्दी के प्रारंभ तक। श्री कामता प्रसाद जैन के विचारानुसार 'उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्व मध्यकाल से नवयुग काल प्रारंभ हो जाता है और वह अब भी वर्तमान है। वैसे 8वीं शतीं से 10वीं शती तक अपभ्रंश भाषा में जैन प्रबन्ध काव्यों की बहुत रचना हुई है एवं चरित काव्य भी रचे गये हैं। अपभ्रंश व प्राकृत लोकभाषा में जैन साहित्यकारों ने उच्चतम साहित्य का निर्माण किया। कालान्तर में प्राकृत, अपभ्रंश से नि:सृत हिन्दी भाषा जब लोक-मानस में स्थापित हुई तो जैन रचनाकारों ने इसी भाषा में अपनी प्रतिभा का उन्मेष किया। आदि काल : (10वीं शती से 14वीं शती तक) वीरगाथाकाल के समान्तर ही हिन्दी जैन साहित्य का प्रादुर्भाव माना जाता है। वातावरण का प्रभाव साहित्य पर पड़ना सहज है। वीरगाथाकाल में शृंगार और वीर रस प्रधान रासा ग्रन्थों के समान जैन-साहित्य में भी प्रमुखतः रासा ग्रन्थों की रचना हुई। दोनों के रासा ग्रन्थों में प्रमुख अन्तर यह है कि जैन कवियों ने किसी राजा या आश्रयदाता की प्रशंसा व स्तुति में नहीं लिखे वरन् तीर्थंकर एवं प्रमुख धार्मिक, ऐतिहासिक व्यक्ति के विषय में लिखें। धर्म-वार्ता को लेकर भी रासाग्रन्थ लिखे गये हैं। इससे जनता की धार्मिक श्रद्धा दृढ़ होने में सहायता मिली और ऐतिहासिक वार्ता-कथा को गाथाबद्ध करने से ऐतिहासिक तथ्यों की सुरक्षा भी हुई। इस प्रकार आदिकाल में प्रमुखतः धर्म और इतिहास की गाथाओं को लेकर रासा-साहित्य का प्रणयन हुआ। 10वीं और 11वीं शती के अपभ्रंश महाकाव्यों में उत्कृष्ट कोटि का भावपक्ष व कलापक्ष दृष्टिगत होता है, जिनका प्रभाव परवर्ती महाकाव्यों पर भी पड़ना स्वाभाविक है। हिन्दी के वर्तमान रूप का मूल आविर्भाव भी इसी अपभ्रंश भाषा से ही हुआ है, जिसमें रासो-साहित्य का सृजन हुआ। पुष्पदत्त इसी भाषा के प्रथम और श्रेष्ठ महाकवि स्वीकारे जाते हैं, जो 10वीं शताब्दी में हुए। उनका सबसे महान काव्य 'महापुराण' है, जो उन्होंने सं० 965 में पूरा किया था। इस ग्रन्थ को सम्पूर्ण समझते हुए स्वयं घोषित करते हैं कि 'इस रचना में प्राकृत के लक्षण, समस्त नीति, छन्द, अलंकार, रस, तत्वार्थ निर्णय 1. द्रष्टव्य-आ. कामता प्रसाद जैन-हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ. 143. 2. डा. राजनारायण पांडे-महाकवि पुष्पदत्त-पृ० 1.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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