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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
आनन्दघन-बनारसीदास, रूपचन्द, जीवराम, भागचन्द, द्यानतराय जैसे उच्च कोटि के कवि थे, तो दूसरी ओर हेमचन्दाचार्य, यशोविजय जी और आत्मानन्द जी जैसे दार्शनिक, आध्यात्मिक कवि-विद्धान भी हुए, अर्थात् महाकवि, तत्वचिंतक और विद्वान आचार्यों का मानों त्रिवेणी-संगम सा हो गया। 'जैन-साहित्य सृष्टाओं ने अखण्ड आत्मस्वरूप आत्मा का ही अपने अन्तस में साक्षात्कार किया और साहित्य में उसी की अनुभूति को मूर्तिरूप प्रदान कर सौंदर्य के शाश्वत प्रकाश की रेखाओं द्वारा वाणी का चित्र अंकित किया। प्राचीन जैन साहित्य में प्रबन्ध काव्य, चरित काव्य, एवं रासा-ग्रन्थों के साथ कवियों ने मुक्तक काव्यों की रचना भी की है। उन्होंने अपने पदों एवं भजनों में गुरु वंदना एवं उसकी महत्ता पर जोर दिया है। फिर भी गुरू को तीर्थंकरों से न श्रेष्ठ माना है, न समान ही। गुरु की महत्ता पथ-प्रदर्शक के रूप में अवश्य स्वीकृत है। गुरू धर्म तथा तीर्थंकर का सम्यक् ज्ञान देकर सच्चा मानव बनाने में सहायभूत होते हैं। अतएव तीर्थंकर, सिद्धों, आचार्यों, उपाध्याय एवं समस्त साधुवर्ग के प्रति नमस्कार (नमोऽर्हन्त सिद्धाचार्योपाध्यायः सर्व साधुभ्यः नमः।) सूचक स्तुति के पद-भजन उपलब्ध. होते हैं। आराध्यदेव के प्रति श्रद्धा पैदा करने के लिए नाम-स्मरण, स्तुति-वंदना और ध्यानादि का प्रयोग आवश्यक है। अतः ऐसी धार्मिक मुक्तक रचनाओं में कवि अपनी दीनता-हीनता व लघुता तथा तीर्थंकरों को.सर्व शक्तिमान, दीन-दयालू, भवसागर-तारक के रूप में वर्णित करते है। ऐसी रचनाओं में शान्त रस व दास्यभाव की प्रधानता रहना स्वाभाविक है। ऐसे मुक्तकों के अतिरिक्त शतकों, बारहखड़ी, चौबीसी, बत्तीसी, छत्तीसी आदि की संख्या भी काफी है। डा. प्रेमसागर जैन लिखते हैं-"भक्तिकालीन जैन भक्त कवियों ने बावनी, शतक, बत्तीसी और छत्तीसी आदि रूप में अपने भाव अभिव्यक्त किये है। जैनों के संस्कृत-प्राकृत साहित्य में ऐसी रचनाएं उपलब्ध नहीं हैं। अजैन हिन्दी कवियों में इनका प्रणयन कम ही हुआ है। बारहखड़ी के अक्षरों को लेकर सीमित पदों में काव्य-रचना करना जैन-कवियों की अपनी विशिष्टता है। ___ यहां हम 10वीं शती से 19वीं शती तक के हिन्दी जैन साहित्य की एक संक्षिप्त पीठिका प्रस्तुत करना चाहेंगे, क्योंकि इसी पीठ पर आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य की निर्मित्ति हुई है। इस अवधि को आदि काल, मध्यकाल और परिवर्तन काल के स्वरूप में विद्वानों ने विभाजित किया है-जैसे :1. द्रष्टव्य-आ. नेमिचन्द्र शास्त्री, हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन-भाग-1, पृ. 20. 2. डा. प्रेमसागर जैन : हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ॰ 28.