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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य-साहित्य का शिल्प-विधान 511 विशेषता तथा लोक-कल्याण की भावना को उजागर किया है। भाषा आलंकारिक न होने पर भी रोचकता तथा स्वाभाविकता का पूरा निर्वाह किया गया है। लेखक ने कहीं भी जीवनीकार के जीवन-प्रसंगों की यथार्थता का अतिक्रमण नहीं किया है। लेखक की भाषा-शैली भी श्रद्धा की सुगन्ध लिए हुए रसात्मक है-'वे आत्मार्थी हैं, आत्मा अनुसंधानी है और समाज हित में भी बड़े-बड़े चौहकस और अनासक्त वृत्ति से चल रहे हैं। उनकी मुस्कान में समाधान है और वाणी में समन्वय का अनाहत नाद। उनका हर काम मानवता की मंगल मुस्कुराहट है और हर शब्द जीवन को दिशा-दृष्टि देनेवाला है। हम कहते हैं कि वे भुजंगी-विश्व के बीच चन्दन के बिरछ है-अनंत सुवास के स्वामी।' 'आदर्श रत्न' जीवनी मुनि श्री रत्नविजय जी महाराज के शिष्य आचार्य देवगुप्त सूरि ने लिखी है, जो जीवनी की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। लेखक स्वयं जैन धर्म के विद्वान आचार्य हैं। अपने गुरु की जीवनी की भाषा-शैली में यत्र-तत्र व्याकरण की गलतियाँ रहने पाई हैं। भाषाकीय प्रौढ़ता का अभाव होने पर भी धार्मिक विवेचन के साथ नायक के बाह्य तथा आंतरिक जीवन के परिचय में प्रामाणिकता व सुन्दर वर्णनात्मकता होने से जीवनी का साहित्यिक एवं धार्मिक महत्व रहता है। मुनि श्री विद्यानंद जी ने प्रसिद्ध विद्वान मुनि 'राजेन्द्र सूरि जी की जीवनी' सुन्दर शैली में लिखी है। इसमें जीवनी नायक के महत्वपूर्ण जीवन-प्रसंगों एवं उपलब्धियों को कलात्मक ढंग से विचारपूर्ण शैली में प्रस्तुत किया है। _ 'जैनाचार्य विजयेन्द्र सूरि जी की जीवनी' जैन लेखक श्री काशीनाथ सर्राफ ने रोचक शैली में लिखी है। आचार्य तुलसी की जीवनी श्रीयुत् छगनलाल सराक ने 'तुलसी जीवन झांकी' नाम से सुन्दर भाषा-शैली में लिखी है, जिसमें आचार्य तुलसी की विद्वता, बहुश्रुतता, तथा मानव-कल्याण के कार्यों का विवेचन लेखक ने श्रद्धा व प्रेम से किया है। इन सबके अतिरिक्त जैन विद्वानों एवं आचार्यों की जीवनी उनके प्रशंसक या अनुयायी के द्वारा लिखने की प्रणालिका जैन साहित्य में प्रारम्भ से है और आज भी विद्यमान है। इनमें से प्रायः सभी जीवनियों का साहित्यिक मूल्य भी रहता है, क्योंकि नायक के जीवन की प्रामाणिक घटनाओं, धर्म-कार्य, दीक्षा-शिक्षा के साथ लोक-कल्याण की प्रवृत्ति और साहित्य का भी सुन्दर शैली में वर्णन रहता है। आधुनिक युग में तीर्थंकरों का चरित भी काफी मात्रा में प्राप्त होते हैं, जिनकी विषय वस्तु सभी में प्रायः समान रहती है। लेकिन भाषा-शैली की
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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