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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य लेखक ने किया है-'दिशाएँ हंसने लगीं। हवा प्रसन्न होकर वृक्षों के साथ खेलने लगी। वृक्ष की डालें मानो नाच-नाच कर इस महापुरुष के आगमन की खुशी मनाने लगीं।" लेखक ने जीवनी नायक के बचपन, त्याग, वैराग्य, दीक्षा-अध्ययन, संयम, कार्यक्षेत्र एवं सत्कार्यों का सुन्दर साहित्यिक शैली में वास्तविक घटनाओं के साथ निरूपण किया है।
आधुनिक जैन-साहित्य एवं (दिगम्बर) समाज के महान साधक मुनि विद्याविजय जी द्वारा प्रणित 'श्री भूपेन्द्र सूरि' की जीवनी में लेखक का कवित्व तथा चिन्तनकार का रूप भी देखा जा सकता है। नायक की जन्मभूमि भोपाल नगरी का प्राकृतिक व भौगोलिक वर्णन सुन्दर पद्य में किया है-यथा
थी नगर भोपाल की अति चारुता उस काल में। पूर्ण था धन-धान्य से वह और मंगल भाल में। ऐक्यता का पाठ पढ़ती वीर रस के वास में।'
लेखक की भाषा प्रास-अनुप्रास युक्त होने पर भी पात्र के प्रति श्रद्धा व प्रेम-भावना से पद्य में लिखित यह जीवनी रोचक व साहित्यिक बन पड़ी है। उच्च कोटि की कल्पना, भाव-प्रवणता, आलंकारिक शब्दावली की विशेष उम्मीद रखना उपयुक्त संगत नहीं होती, फिर भी प्रास-अनुप्रास की छटा अच्छी है। जैन धर्म के तत्त्वगत वैराग्य, राग-द्वेष रचित भाव, सद्गुरु, दीक्षा-ज्ञान, जैन धर्म की उन्नति आदि की चर्चा चरित्र-नायक के क्रमिक विकास के साथ-साथ लेखक ने सरल सुन्दर भाषा में की है
धर्म के शुभ तत्त्व को गुरु नित्य देते ज्ञान से, आत्म-नैया पार होती, विश्व में यशनाम हो। (पृ. 40)
इस जीवनी का-काव्य का-नायक सतत् परिश्रम शील था। परिणामस्वरूप साहित्य-मण्डल, श्राविकाश्रम, जैन गुरुकुल, शिशु विश्राम केन्द्र आदि की स्थापना करवा कर लोक मंगल की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देते थे। मुनि विद्याविजय जी ने भूपेन्द्र-सूरि के शील, गुण, सादगी, उच्च-चरित्र, ज्ञान-पिपासा तथा जैन-धर्म-उत्कर्ष की प्रवृत्ति का प्रशंसनीय आलेखन किया है। पुस्तिका के अन्त में मुनि कल्याण विजय जी ने संस्कृत भाषा में 'भूपेन्द्र सूरि गुणाष्टकम् की रचना भिन्न-भिन्न छन्दों में की है। ___जयप्रकाश वर्मा लिखित 'मुनि श्री विद्यानंद जी' की जीवनी में प्रखर दिगम्बर जैन साधु के साथ हिन्दी जैन साहित्यकार के जीवन की महत्ता, 1. जयचन्द गांधी-सच्चे साधु, पृ. 1.